SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अनन्त व्रत कथा [ ११३ ********************* 1 आठवीं पर १४ जीवसमासोंका विचार करें नवमीं पर गंगादि १४ नदियोंका नामोच्चारण करे। दशवीं पर तीनलोक जो १४ राजू प्रमाण ऊंचा है उसका विचार करे। ** ग्यारहवीं पर चक्रवतींके चौदह रत्नोंका चिन्तवन करे | बारहवीं पर १४ स्वर (अक्षर) का चिन्तयन करे। तेरहवीं पर चौदह तिथियोका विचार करे। चौदहवीं गांठ पर मुनिके मुख्य १४ दौष टालकर जो आहार लेते हैं उनका विचार करे। इस प्रकार १४ गांठ लगाकर मेरुके उपर स्थापित प्रतिमाके सन्मुख इस अनन्तको रखकर अभिषेक करे। अनन्त प्रभुकी पूजन करे फिर नीचे लिखा मंत्र १०८ बार जपे मंत्र-ॐ अर्हते भगवते अनन्तो अनन्त सिझ्झ धम्मे भगवतो महाविश्झ - अनन्त केवलीय अनन्त केवल णाणे अनन्त केवल दंसणें अणु पुज वासणें अनम्ले अनन्तागम केवलि स्वाहा ( १ ) अथवा छोटा मंत्र जपे मंत्र - ॐ अहं हंसः अनन्तकेवलिये नमः 1 (२) इस प्रकार चारों दिन अभिषेक, जप और जागरण भजन पूजनादि करे। फिर पूनमके दिन उस अनन्तको दाहिनी भूजापर या गलेमें बान्धे । पश्चात् उत्तम मध्यम या जघन्य पात्रों में से जो समय पर मिल सके आहार आदि दान देकर आप पारणा करे। इस प्रकार १४ वर्ष तक करे। पश्चात् उद्यापन करे तब १४ प्रकारके उपकरण मंदिरमें देवें जैसे- शास्त्र, धमर, छत्र, चौकी आदि । चार प्रकार संघोंको आमंत्रण करके धर्मकी प्रभावना करे। यदि उद्यापनकी शक्ति न होवे तो दूना व्रत करे ।
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy