SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अनन्त व्रत कथा [१११ ************************** ****** (२३४ श्री अनन्त व्रत कथा नमों अनन्त अनन्त गुण, नायक श्री तीर्थेश। कहूँ अनन्त प्रतकी कथा, दीजे बुद्धि जिनेश ।। इसी जम्यूद्वीपके आर्यखण्डोंमें कौशल देश है। उसमें अयोध्या नगरीके पास पाखण्ड नामका ग्राम था। उस प्राममें सोमशर्मा नामका एक अति दरिद्र ब्राह्मण अपनी 'सोमा नामकी स्त्री और बहुतसी पुत्रियों सहित रहता था। यह (ब्राह्मण) विद्याहीन और दरिद्र के काम बीझ: म पर सादा पोषण करता था, तो भी भरपेट खानेको नहीं पाता था। तय एक दिन अपनी स्त्रीकी सम्मतिसे उसने सहकुटुम्ब प्रस्थान किया तो घलते समय मार्गमें शुभ शकुन हुए। अर्थात् सौभाग्यवती स्त्रियां सन्मुख मिलीं। कुछ और आगे चला तो क्या देखता है कि, हजारों नरनारी किसी स्थानको जा रहे हैं पूछनेसे विदित हुआ कि वे सब अनन्तनाथ भगवानके समोशरणमें वन्दनाके लिये जा रहे हैं। यह जानकर यह ब्राह्मण भी उनके पीछे हो लिया और समोशरणमें गया। यहां प्रभुकी चन्दनाकर तीन प्रदक्षिणा दी और नर कोठे में यथास्थान जा बैठा, जहां समयशरणमें दिव्यध्यनि सुनकर उसे सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हुई। पश्चात् घारित्रका कथन सुनकर उसने जुआ, मांस, मद्य, वैश्यासेयन, शिकार, चोरी और परस्त्रीसेवन ये सात व्यसन त्याग किये। पंच उदम्बर और तीन मकार त्याग ये अष्ट मूलगुण भी धारण किये। हिंसा, झुठ, चोरी, कुशील और अतिशय लाभ इन पंच पापोका एकवेश त्यागरूप अणुव्रत
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy