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________________ श्री गरुड़ पंचमी व्रत कथा [१०७ ********************** * * * * * * * * * * उन्हें देखकर चारित्रमतीने नमस्कार वंदना की और विनम्र हो धर्मश्रयणकी इच्छासे वहीं बैठ गई। धर्मोपदेश सुननेके अनन्तर चारित्रमतीने अपने घरकी कुशल पुछी। तब श्री मुनिने अवधिज्ञानसे विचारकर कहा-बेटी! तेरे पुत्रको तेरी सौकीनने नदीमें डाल दिया है। सो यदि तू श्रावण सुदी ६ का व्रत माल करेगी. तो रे मुळ गायनीदेशी लाकर तुझे देवेगी। यह सुनकर चारित्रमती घर आई और मन, वचन, कायसे छठका ग्रत पालन किया। इससे कुछ दिन पश्चात् उसका पुत्र उसे मिला इस प्रकार चारित्रमतीने मन, वचन, कायसे व्रत पालन किये और विधि सहित उद्यापन किए, पश्चात् धर्मध्यान करती हुई अंतमें सन्याससे मरण कर यह स्त्रीलिंग छेदकर य॑गमें देय हुई, और यहांसे आकर राजपुत्र हुई। पश्चात् राजपुत्र भी कारण पाकर वैराग्यको प्राप्त हुआ और दीक्षा लेकर शुक्लध्यानके बलसे उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पद प्राप्त किया। इस प्रकार प्रतका फल सुनकर गरुड विद्याधरने मन. पचन, कायसे प्रत पालन किया। जिससे उसे पुनः विद्या सिद्ध हो गई और यह मनुष्योथित सुख भोगकर अंतमें पैराग्यको प्राप्त हो गया और दीक्षा ले तप करने लगा। पक्षात् शुक्लध्यानके बलसे केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्धपद पाया। इस प्रकार यदि अन्य भय्यजीय भी श्रद्धा सहित यह व्रत पालन करेंगे तो अवश्य ही उत्तम फल पायेंगे। गरुड और चारित्रमती, अहि पंचमी प्रत पाल। लहो शुद्ध शिवपद सही, तिनही नमू तिहुँ काल॥
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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