SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कामदेव मदन से भी युधक वर्द्धमान कान्तिमान थे। पिता-माता के द्वारा प्रस्तावित विवाह का विरोध करते हुए प्रभु कहते हैं"बन्ध मुझको स्वीकार नहीं मैं केवलज्ञान चाहता हूँ।" (वीरायन, पृ. 211) प्रभु को अनिमित्तिक वैराग्य प्राप्त होता है। वे आत्मविकास के लिए दीक्षा ग्रहण करना चाहते हैं। श्रमण रूप--आत्मकल्याण और लोककल्याण युवराज वर्द्धमान का विशेष आकर्षण था। इसीलिए वर्द्धमान ने गृहस्थाश्रम की अपेक्षा श्रमण-मुनि जीवन को अंगीकृत किया। तीस वर्ष की अवस्था में कठोर श्रमणसाधना पथ को स्वेच्छया स्वीकृत किया । तपस्या के बारह वर्ष के काल में महावीर को मनुष्यकृत, देवकृत एवं पशुकृत अनेक दुर्धर प्रसंगों को झेलना पड़ा। फिर भी वे अपनी साधना पर दृढ़ रहे । आलोच्य महाकाव्यों के कवियों ने महावीर की श्रमणावस्था की महिमा का गरिमापूर्ण भाषा-शैली में बड़ी श्रद्धा से चित्रण किया है। मुनिदीक्षा के प्रसंग को वित्रित करता हुआ कवि कहता है "कर डाले सारे केश, विलुचित क्या देरी। बज उठी कहीं थी, सहसा कोई रणभेरी ॥ निर्मुक्त पाप की सकल क्रिया से थे प्रभुवर । अब मूल अठाइस गुण, के पालन में तत्पर ॥" (तीर्थकर महावीर, पृ. 124) मुनिदीक्षा के समय समस्त वेष-आभूषण का त्यागकर सम्पूर्ण नग्न रूप में स्थित होना, सिर के बालों को भी अपने हाथों से उखाड़कर फेंक देना, घर त्यागकर वन में एकान्त में मौन रहकर साधना करना, उपवास करना तथा नीरस आहार सप्ताह में, मास में, दिन में एक बार हस्तपुट में करना आदि आचारों का पालन अत्यावश्यक होता है। मुनिवेश में तप करते हुए महावीर की आकृतिमुद्रा का चित्रांकन करते हुए कवि गुप्तजी कहते हैं "बैठ तरुतल समाधि में लीन, किया करते तप में तन क्षीण। शिशिर में जब काया थर-धर, चतुष्पद या सरिता तट पर। बैठ प्रभु करते थे नित्य ध्यान ॥” (वही, पृ. 147) सूर्य के तेज के समान प्रभु का तेज था। बाह्य संघर्षों के साध आन्तरिक संघर्ष का चित्रण भी आलोच्य महाकाव्यों में हुआ है। चार कषायों, अष्ट कर्म रूपी शत्रुओं का नाश करने के लिए महावीर को स्वयं से युद्ध करना पड़ा। उस आत्मसंघर्ष में वे विजयी हुए। गुप्तजी लिखते हैं भगवान महावीर का चारेत्र-चित्रण :: 105
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy