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अनेक आदर्शों को प्रणाम करके ज्ञानियों को नमस्कार किया है। अपने सृजन कार्य में सफलता पाने के लिए कवि ने अनेक शक्तियों से निवेदन किया है। दृश्य-अदृश्य ताकतों से सहयोग भी माँगा है। सर्व शक्ति-सम्पन्न तीर्थंकर भगवान महावीर की विविध प्रकार के पुष्प-प्रदीपों से पूजा का वर्णन है। तीर्थंकर भगवान महावीर, आशुतोष भगवान शिव, शेषशायी भगवान विष्णु, ज्ञानदाता गुरु, सौधर्म इन्द्र, स्वरालोक शक्ति सरस्वती आदि देवी-देवताओं से प्रार्थना की गयी है। ऋषि, पुाने, तपस्वी, योगियों की वन्दना की है। प्रकृति के प्रतीकों की मन्नत, धरती, दुनिया और देश की नमन, इतिहास के दयनीय पृष्ठ पर अश्रु अर्घ्य प्रस्तुत किये हैं। सज्जन और दुर्जन-वर्णन है । विविध रूपों में विविध पुद्गल परमाणु आकारों की रचना साफल्य के लिए उपासना की है। महावीर के जन्म से पूर्व की स्थिति का वर्णन कवि ने सुन्दर दंग से किया।
द्वितीय सर्ग-पृथ्वी-पीड़ा
कालचक्र के आख्यानों में दुःख-सुख के आमुख, सुषमा-दुःषमा के दो आरों के बीच पृथ्वीचक्र का चित्रण किया है। भूमि और कवि के संवाद प्रस्तुत करके कालक्रम की तस्वीरों को अंकित किया गया है। प्रकृति और पुरुष के प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये हैं। तत्पश्चात् पृथ्वी के स्वरूप को स्पष्ट किया है। पृथ्वी के मुँह से व्यथा की कहानी कही है। अधर्मी, अनार्यों और विधर्मियों के आने से दुर्दशा का चित्रण किया है। अनार्यों के अत्याचारों का वर्णन है। विलासिता, रंगरलियाँ, स्वार्थ आदि कुरूपों की तस्वीरें रेखांकित की गयी हैं। पाप बढ़ने से प्रलय और दुःखों की गतिविधियों का वर्णन है। स्वार्थों की अति से ध्वंस की व्याख्या की है। इस धरती पर अनेक भयंकर युद्ध हुए। उस पीड़ा की अभिव्यक्ति पृथ्वी माता ने की है।
तृतीय सर्ग-ताल-कुमुदनी
प्रस्तुत सर्ग का आशय निम्नलिखित तथ्यों के संकेतों द्वारा समझ में आ सकता है। दार्शनिक दृष्टि से कथावस्तु का प्रारम्भ किया है। वन्दनीय 'त्रिशला' और 'सिद्धार्थ के परिणय का चित्रण किया है। भगवान महावीर के नाना, मामा, बाबा, पिता की बंशावली को सूत्रों में चित्रित किया है। श्रृंगार की पूर्वानुभूतियाँ, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि के अंकुर का वर्णन हैं। वरयात्रा, स्वागत-सत्कार, आनन्द एवं सुख का वर्णन अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया है। वैवाहिक आदर्शों को अभिव्यक्ति, उपदेशामृत, संवेदनशील अनुभूतियाँ, प्रकृति-वेदना आदि का भी चित्रण है। सर्ग के अन्त में कवि की उक्ति है।
"त्रिशला में थे सिद्धार्थ मुखर, स्वर गूंजे कुमुदिनी के। जल में तुषार भीगे पंकज, मानो थे भाल कुमुदिनी के।।" (चीरायन, पृ. 871
आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: ।