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भ्रान्त एवं निराधार धारणाएँ भगवान महावीर के चरित्र को लेकर व्यक्त की गयी हैं। प्रस्तुत काव्य-कृति का सृजन करने का उद्देश्य कवि का यह रहा है कि भगवान महावीर का प्रमाणित जीवन चरित्र प्रस्तुत किया जाए।
__ प्रस्तुत काव्य में महावीर की चारित्रिक विशेषताओं एवं उनकी दार्शनिक विचारधारा मौलिक न होकर परम्परागत है। तीर्थंकर भगवान महावीर जैनधर्म के संस्थापक नहीं हैं, वे उसके प्रवर्तक हैं। जैनधर्म वैदिक हिंसक यज्ञ परम्परा के विरोध में स्थापन नहीं हुआ है। भगवान महावीर ने सिर्फ अपने युग की आवश्यकताओं को देखते हुए जैनधर्म का पुनरुद्धार किया। उनका यह कार्य मनुष्य मात्र के लिए विशेष उपकारी रहा है।
प्रस्तुत कृति के आकार को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि इसे खण्डकाव्य कहा जाए या महाकाव्य । 180 पृष्ठों की इस कृति में आठ सर्गों में अत्यन्त संक्षेप में पहावीर के चरित्र एवं उपदेश को पौराणिक आख्यानों के आधार पर वर्णित किया है। शिल्प की दृष्टि से यह स्पष्ट है कि कवि ने विविध छन्दों में रोचक ढंग से महावीर के चरित्र को प्रस्तुत किया है। काव्य शैली आकर्षक है, वाणी-विलास मात्र नहीं है। इसमें उदात्त भावनाओं को प्रांजल भाषा में व्यक्त किया गया है। शैलीगत सौन्दर्य, ध्वन्यात्मकता, स्पष्टता और प्रवाहमानता इस कृति का आकर्षण है। काव्य में भाव-चित्रण, विषय का निर्वाह, सरसता, साहित्यिक भाषा आदि का निर्वाह हुआ है। चरित्र का चित्रण पंचकल्याणकों के चित्रण द्वारा हुआ है।
'परमज्योति महावीर' महाकाव्य
' प्रस्तुत महाकाव्य 'परमज्योति महावीर' सन् 1961 में इन्दौर से प्रकाशित हुआ हैं। कवि ने अपने इस महाकाव्य को करुण, धर्मवीर एवं शान्तरस प्रधान महाकाव्य कहा है। इसमें तेईस सर्ग है और 2519 छन्द हैं। मनुष्य क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों से समरम्भ, समारम्भ, आरम्भ पूर्वक मन, वचन, कर्म इन तीन की सहायता से कृत, कारित, अनुमोदन इन तीन रूपों में अर्थात् 108 (4 x 3 x 3x3 = 108) प्रकार से पाप किया करते हैं । इसी उद्देश्य से कवि ने महाकाव्य में प्रत्येक सर्ग में 108 छन्द रखे हैं। सर्गों की संख्या 23 ही निश्चित की है, क्योंकि महावीर के पूर्व 23 तीर्थंकर हो चुके हैं। इस महाकाव्य में भगवान महावीर के जीवन विषयक घटनाओं के सम्यक निर्वाह के साथ तयुगीन परिस्थितियों का सफल चित्रण किया है।
कथावस्तु की दृष्टि से अन्य महाकाव्यों से इसमें पृथक्ता है। केवल इसी महाकाव्य में भगवान महावीर के 12' चातुर्मासों और साधनाकाल का विशद वर्णन कर चरित्र नायक के चरित्र को सम्पूर्णता प्रदान की गयी है। आदि से अन्त तक केवल एक ही छन्द का प्रयोग है। तुबोध, सकोमल और जन प्रचलित भाषा के प्रयोग के कारण भाषा में माधुर्य एवं प्रसाद गुण सहज रूप में व्यक्त हुए हैं। महाकाव्य में
आधुनिक हिन्दी पहाकाव्यों में वर्णित महावीर-चाग्न :: ता