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________________ ग्रन्थ लिखे और परम्परा को गतिशील बनाये रखा है। इस श्रेणी में भट्टारक आचार्य आते हैं। जो स्वयं आचार्य न होते हुए भी आचार्य जैसे प्रभावशाली महान् कवि एवं श्रेष्ठ लेखक हुए हैं । उनमें अपभ्रंश के स्वयम्भू पुपदन्त, संस्कृत के असग, कवि धनंजय तथा हिन्दी के बनारसीदास, रूपचन्द पाण्डेय आदि कवि आते हैं। प्राकृत में महावीर चरित्र जैनधर्म में 68 शलाका महापुरुष हुए हैं, जिनका जीवन-चरित्र कवियों ने काव्यों में प्रस्तुत किया। चरित साहित्य का विपुल सृजन प्राकृत में किया गया है। 'तिरेसठ-शलाका पुरुष चरित' इसमें प्रमुख है। 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव और 9 बलदेव के चरित्रों का समावेश इस ग्रन्थ में हुआ है। 'चउपन्नमहापुरिस चरिय' महावीर कथा से सम्बन्धित है। महावीर चरियं - सन् 1082 में 'गुणचन्द्रगणि' ने 12025 श्लोकों से पूर्ण इस प्रौढ़ ग्रन्थ की रचना की। इस अद्वितीय ग्रन्थ में 8 प्रस्ताव हैं, जिनमें से आधे भाग में महावीर के पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। काव्य की दृष्टि से उत्कृष्टतम इस रचना में राजा, नगर, बन, अटवी, उत्सव, विवाहविधि, विद्यासिद्धि, तन्त्र-मन्त्र आदि का वर्णन है। महावीर के जन्म, शिक्षा, दीक्षा आदि का विवरण चौथे प्रस्ताव में विस्तार से दिया गया है। पाँचवें प्रस्ताव में शूलपाणि और चण्डकौशिक के प्रबोधन का वर्णन है । "महावीर के कुम्भारग्राम में ध्यानावस्थित होने, सोम ब्राह्मण को देवदूष्य देने व बर्द्धमान ग्राम में पहुँचने के विविध प्रसंग हैं। यहाँ पर वर्द्धमान ग्राम का दूसरा नाम अस्थिग्राम बताया गया है। सातवें प्रस्ताव में महावीर के परीषह-सहन और केवलज्ञान प्राप्ति का वर्णन है। उसके बाद श्रावस्ती, कौशाम्बी, वाराणसी, मिथिला आदि नगरों में बिहार का वर्णन है। कौशाम्बी में चन्दना द्वारा कुल्माष दान ग्रहण कर उनका अभिग्रह पूर्ण हुआ । आठवें प्रस्ताव में महावीर के निर्वाण का वर्णन किया है। उन्होंने मध्यम पावा में निर्वाण प्राप्त किया। गुणचन्द्रसूरि (सं. 1189 ) नेमिचन्द्रसूरि ( 12वीं शती) के महावीरचरिय ( क्रमशः 12025 और 2385 श्लोक प्रमाण ) काव्य विशेष उल्लेखनीय हैं। इन तरह महावीर चरित का यह अनुपम ग्रन्थ उनके सर्वांग सुन्दर जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालता है। पउमचरियं (पद्मचरित ) - यह विमलसूरि की अनुपम कृति है। इसमें महावीर विषयक विशद विवेचन है। 'सिरिवीरजिणचरिय' नाम से महावीर चरित्र वर्णित है। जन्म - कथा के विस्तार के साथ उनके 'महावीर' नाम की वरीयता में कहा गया है कि उन्होंने मेरुपर्वत को अँगूठे की क्रीड़ा मात्र में प्रकम्पित कर दिया, अतः महावीर नाम देवों द्वारा रखा गया । 1. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. 535 भगवान महावीर की जीवनी के स्रोत :: 31
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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