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उपलब्धियों तथा वैज्ञानिक आविष्कारों से समन्वित करके बौद्धिक स्तर पर पुनमूर्त्यांकन करके उसे आचरण में लाना आज की प्रासंगिकता हैं।
भगवान महावीर के अनीश्वरवादी होने के कारण ईश्वरवादियों ने उन्हें नास्तिक कहा है। जिसे हम नास्तिक कहते हैं, उसे अपने पर, अपने किये पर पूरी आस्था होती है। वह अपने किये का दोष न भगवान, ईश्वर पर मढ़ता है, न भाग्य पर । अपने किये के लिए वह अपने को ही जिम्मेदार मानता है। भगवान पहावीर के विचारों में यह जगत् सत्य है, अनादि है, प्रत्येक जीव स्वतन्त्र है, एकसमान है। इस सृष्टि में जो कुछ होता है उसका एक कारण होता है। जीव, जगत् और परमात्म पद विषयक इस वैज्ञानिक चिन्तन में भाग्य और ईश्वर को बिलकुल स्थान नहीं है। इस प्रकार भगवान महाबीर ने रूट अर्थ में ईश्वर की कल्पना और उसके तथाकथित चमत्कारों से जनसाधारण को मुक्ति दिलाकर उनमें आत्मविश्वास, स्वावलम्बन, पुरुषार्थ और निर्भयता के भाव निर्माण किये। उन्हें आत्मस्वरूप का सम्यक् बोध कराके सत्कार्यप्रवृत्त किया है। इसीलिए भगवान महावीर के चरित्र के आत्मवादी चिन्तन को समकालीन युग-परिवेश में प्रासंगिक माना जाता है। भगवान महावीर के समस्त विचार उनके आचरण में उतरे और उनका आचरण एक आदर्श जीवन पद्धति का पर्याय बन गया। जन्म, जीवन और जगत् इन तीनों को सार्थकता का कालजयी नाम है-महावीर । उनके सल्य के महापौरुष ने समूचे तात्कालिक असत्य और हिंसा को जीता और वे वर्द्धमान से महावीर हो गये। इस परिप्रेक्ष्य में महावीर किसी एक समुदाय विशेष की घरोहर नहीं हैं, वे मानवता के प्राणों के धरोहर हैं। यदि 'सत्य' सबका है, अहिंसा सबकी है, क्षमा सबको है तो महावीर एक विशेष समुदाय के नहीं हो सकते और न ही ये जाति या सम्प्रदाय विशेष के हो सकते हैं। समूची मानवता को समर्पित महावीर सिर्फ़ समूची मानवता के ही हो सकते हैं।
आज मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि तथाकथित सभ्यता के विकास के साथ उसकी सहज, सरल एवं स्वाभाविक जीवनशैली उससे छिन गयी है। आज जीवन के हर क्षेत्र में कृत्रिमता और छद्मों की बहुलता है। आसक्ति, भोगलिप्सा, भय, क्रोध, स्वार्थ, कपट की दमित मूल प्रवृत्तियों के कारण मानवता आज भी अभिशापित है। आन्तरिक संघर्षों के कारण सामाजिक जीवन अशान्त और अस्त-व्यस्त है। वैज्ञानिक प्रगति ते समाज के पुराने सनातन मूल्य ढह चुके हैं। आज हम मूल्य रिक्तता की स्थिति में जी रहे हैं। आज हम विनाश के कगार पर खड़े हैं।
ऐसी सन्त्रस्त एवं दुःखद स्थिति में भगवान महावीर का चरित्र एवं उनके जीवन-दर्शनों ते ही वर्तमान समल्नाओं के समाधान हमें प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान मानव-जीवन की समस्याएँ हैं-1) मानसिक अन्तर्रन्छ, (2) सामाजिक एवं जातीय संघर्ष, (5) आर्थिक संघर्ष, (4) वैचारिक संघर्ष । वर्तमान युग संघर्षयुग है। भगवान महावीर की जीवनगाथा सभी संघर्षों के पार रही है।
भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता :: 149