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________________ है। अतः भगवान महावीर का जीवन-दर्शन अपनी स्वतन्त्र सत्ता रखता है। श्रमण संस्कृति का मूल सिद्धान्त है-आत्मवाद और अनेकान्तबाद । लेकिन यह आत्मवाद अनीश्वरवादी हैं। प्रत्येक आत्मा स्वतन्त्र है। वह अपने सुख-दुःख का कर्ता-भोक्ता स्वयं हैं। वह पुरुषार्थ से परमात्मा हो सकता है। किसी और शक्ति का वह कृपाकांक्षी नहीं है। ईश्वर का कर्तृत्व नकारने के कारण ईश्वरवादियों ने श्रमण विचारधारा को अनीश्वरवादी-नास्तिक कहा है। वस्तुतः श्रमण जास्तिक ही हैं। उनकी आस्तिकता, आत्मा की स्वतन्त्रता, विकास को विराटता, स्वावलम्बन, परिश्रम, तप एवं पुरुषार्थ पर आधारित है। वीतरागता की प्राप्ति प्रमुख लक्ष्य है। सर्वज्ञ केवली बनना प्रमुख ध्येय है। सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र की समन्वित अनेकान्तवादो दृष्टि से तथा अहिंसात्मक आचार पद्धति से ही कंवलज्ञान की प्राप्ति हर आत्मा को हो सकती है। आलोच्य ग्रन्थ दार्शनिक या आध्यात्मिक ग्रन्थ नहीं हैं। वे महाकाव्यात्मक चरित्र काव्यग्रन्थ हैं। भगवान महावीर के चरित्र की महानता, उदात्तता तथा श्रेष्ठता का परिचय हमें उनके सर्वव्यापक, मानवतावादी विचारों से हो जाता है। भगवान महावीर ने बारह वर्ष मौन धारण करके श्रमण तपश्चर्या की। केवलज्ञान-प्राप्ति के बाद तीस वर्ष विहार करके अपनी ॐकारस्वरूप दिव्यध्वनि द्वारा जनसाधारण तक आत्मकल्याण का मार्ग प्रतिपादित किया। उनके गणधर इन्द्रभूति गौतम ने महावीर के विचारों की अभिव्यक्ति शब्दरूप में की। जैनागम के आधार पर रचित प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश के पुराण, काव्य आदि लिपिबद्ध ग्रन्थ भगवान महावीर के विचार-दर्शन के आधार ग्रन्थ रहे हैं। आधुनिक कवियों के महाकाव्यों का सृजन करने का पुख्य उद्देश्य जनसाधारण तक भगवान महावीर की सीख का प्रचार-प्रसार करना रहा है। अतः दर्शन, सिद्धान्त जैसे गहन विषयों का विश्लेषण महाकाव्यों में प्रसंगोपात ही रहा है। मुख्यतः आत्मगत आचार पक्ष और लोककल्याणकारी विचारों की अभिव्यक्ति इन महाकाव्यों में हो पायी है। अनेकान्तवाद जीव, जगत् और ईश्वर विषयक चिरन्तन प्रश्नों के उत्तरों की खोज महान् दार्शनिक अपनी सुनिश्चित चिन्तन-पद्धति पर बुगीन सन्दर्भ में प्रस्तुत करते हैं। भगवान महावीर प्रणीत जीवन-दर्शन की चिन्तन प्रणाली का नाम है-अनेकान्तवाद । विचार-धारा की कथन प्रणाली का नाम है-स्याबाद । कथन-प्रणाली की विविध पद्धतियों का नाम है सप्तभंगीनय । अनेकान्तवाद और स्यावाद भगवान महावीर के जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति के आधारभूत स्तम्भ हैं। जगत् के वस्तु स्वरूप का यथार्थ श्रद्धान, यथार्थ ज्ञान तथा यथार्थ आचार-व्यवहार अनेकान्तवाद से ही सम्भव है। इस मौलिक निरूपण प्रणाली की विवेचना आलोच्य महाकाव्यों में उपलब्ध नहीं होती। धीरेन्द्र प्रसाद जैन एवं रघुवीरशरण 'मित्र' ने अपने महाकाव्यों में इन तत्त्वों के 128 :: हिन्दी के महाकान्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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