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व्यक्त होता है, लेकिन किसी भी पात्र का सम्पूर्ण मन किसी कार्य या घटना में व्यक्त नहीं हो सकता। हिमनग की तरह उसके दर्शन आंशिक होते हैं। पात्र का प्रियजन भी उसे पूर्णरूप से नहीं जान सकता। स्वयं पात्र भी अपने मन को पूर्ण रूप से जानने में असमर्थ होता है। साहित्यकार अगर अपने पात्रों का निर्माता और अभिव्यंजक दोनों होता है तो वह पात्र के अन्तरंग का सुन्दर चित्रण कर सकता है। विश्वबन्धु शर्मा का कथन है-"चरित्र-कल्पना से यह अर्थ निकलता है कि पात्र के आन्तरिक एवं वाह्यस्वरूप का निर्माण उसके वर्ण, रूपाकार, वेशभूषा एवं वस्त्रालंकार, भाव सौन्दर्य, गुण सौन्दर्य, व्यापार सौन्दर्य, उपदेश एवं शिक्षण सौन्दर्य, बौद्धिकता, कलात्मकता, धार्मिकता, भाव, अवगुण, आदतें, स्वभाव, कार्य-व्यापार आदि सभी का निर्माण चरित्र में इतिहास, पुराण और कवि-कल्पना से ही होता है। इतिहास पुराणाश्रित कवि कल्पना से चरित्र में विविधता आती है। इसी विविधता के कारण पाठकों को आनन्द की अनुभूति होती है। ऐसी बलवती कल्पना से ही सत्-असत् पात्रों में संघर्ष चित्रित कर चरित्रनायक के गुणों का चरमोत्कर्ष स्पष्ट किया जाता है।
ऐतिहासिक महाकाव्यों में यह सम्भव नहीं हो सकता। साहित्यिक अपने ऐतिहासिक पात्रों का स्रष्टा नहीं होता, वह सिर्फ निवेदक, कथाकार या चरित्रचित्रणकार होता है। अतः साहित्यिक अपने ऐतिहासिक चरित्रनायक से पूर्णतः परिचित नहीं होते। इतिहासकारों ने ऐतिहासिक पुरुष के जीवन की जो सत्य घटनाएँ दी हैं, उन घटनाओं के आधार पर हो साहित्यिक को चलना पड़ता है। उसमें परिवर्तन करने का कोई अधिकार साहित्यिक को नहीं रहता। परिणामस्वरूप ऐतिहासिक चरित्रनायकों का अन्तरंग चित्रण इन बन्धनों के कारण सीमित या शिथिल होने की सम्भावना रहती है। इतिहास में अधिकांश नायक के सामाजिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक जीवन के ही निर्देश होते हैं। नायक के पारिवारिक जीवन का निर्देश इतिहास में नहीं होता है। साहित्यकार सामाजिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक जीवन को इतिहास-सम्मत चित्रित करें और पारिवारिक जीवन को अपनी कल्पना के अनुसार और ऐतिहासिक चरित्र-चित्रण को ध्यान में रखकर चित्रित करें तो अन्तरंग चित्रण प्रभावी हो सकता है। भगवान महावीर के चरित्र का अन्तरंग चित्रण करने के लिए आलोच्य महाकाव्यों में निम्न प्रमुख चित्रण प्रणालियों का प्रयोग हुआ है।
1. स्वप्नविश्लेषण द्वारा चित्रण। 2. अन्तःप्रेरणाओं के अनुस्मरण द्वारा चित्रण। 3. जीवन-दर्शन द्वारा चित्रण।
स्वप्नविश्लेषण
पात्र के अचेतन मन की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए साहित्यकार विभिन्न
1. डॉ. विश्वबन्धु शर्मा : साठोत्तर महाकाव्यों में पात्र-कल्पना, पृ. 308 |
120 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर