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________________ 路路路路路** **** ** * ******** २. कमातील : जैनागम में कल शब्द का अर्थ शरीर है। शरीर नामकर्म का एक भेद है। वह पाँच प्रकार का है - औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण। ये पाँचों ही शरीर आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा *व कार्मणवर्गणा के द्वारा निष्पन्न होते हैं अर्थात् आहारवर्गणा से औदारिक, * वैक्रियक और आहारकशरीर का निर्माण होता है। तैजसवर्गणा से * * तैजस व कार्मणवर्गणा से कार्मणशरीर बनता है। ये वर्गणाएँ पुद्गल की * स्कन्धरूप पर्यायें हैं। स्कन्ध परमाणुओं का समुदाय है व परमाणु पुद्गल है। अतः सम्पूर्ण शरीर नियमतः पुद्गलमय हैं। सिद्धप्रभु मात्र ज्ञानशरीरी * होने से कलातीत कहलाते हैं। *१. गन्यातीत : गन्ध पुद्गलद्रव्य का विशेष गुण है। सुगन्ध और * * दुर्गन्ध ये गन्ध के दो भेद हैं। पुद्गलद्रव्य से अत्यन्त विविक्त हो जाने के * के कारण सिद्धप्रभु में किसी भी प्रकार की गन्ध नहीं होती। अतः वे गन्धातीत हैं। *. द्वंदविनिर्मुक्त : द्वंद्व को परिभाषित करते हुए आर्ष कहता है * द्वंद्व कलह युग्मयोः। द्वंद्व कलह और युग्म का नाम है। * ज्ञानादिक परिणति और वैभाविक परिणतिरूप द्वैत स्थिति ही * द्वंद्व है। सिद्धप्रभु ने परपरिणति को विनष्ट कर दिया है। राग-द्वेष की * * उत्पत्ति द्वंद्व है। राग-द्वेष आदि की उत्पत्ति सिद्धों में नहीं होती है ।अतः वे द्वंद्वमुक्त हैं । * इन चार विशेषणों से युक्त सिद्धों का ध्यान करना चाहिये। * शंका : सिद्धों का ध्यान क्यों करना चाहिये? * समाधान : संसार में यह नियम है कि यद् ध्यायति तद् भवति जीव A. जैसा विचार करता है, उसीतरह बन जाता है। आत्मा का कल्याण करने की इच्छा करने वाला भव्य स्वस्वरूप की प्राप्ति करके निर्दूतकलिलात्मा *बनना चाहता है। मनुष्य को जिस पथ पर जाना होता है, उसी पथ का * * आदर्श उसे बनाना पड़ता है। शुद्धात्मा बनने के लिए सिद्धों से श्रेष्ठ * * आदर्श अन्य कोई नहीं है। अतः सिद्धों का ध्यान करना चाहिये। * सिद्धपरमात्मा और मेरी आत्मा में तात्त्विक दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। मैं अपने आप को शुद्ध बनाकर उनके समान बन सकता हूँ, ऐसा * विश्वास करके तदनुकूल आचरण करना चाहिये। **********३० *********** *****************帝张华 ******
SR No.090187
Book TitleGyanankusham
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorPurnachandra Jain, Rushabhchand Jain
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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