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ज्ञानप्रदीपिका। चन्द्राव्योनस्थिते शुक्र जोवाढव्योगस्थिते खौ॥
तल्लग्ने कार्यसिद्धिः स्यात् पृच्छतां नात्र संशयः । चन्द्र राशि से दशम में शुक्र हो और बृहस्पति की राशि से दशम में सूर्य हो तो ऊपर के बताये हुए लग्न में पूछने वाले को निःसन्देह सिद्धि होती है ।
उदयात्सप्तमे व्योम्नि शुक्रश्चेत् स्त्रोसमागमः ॥
धनागमं च सौम्ये च चन्द्रेऽप्येवं प्रकीर्तितम् । लग्न से सप्तम में शुक्र हो तो स्त्रीसमागम, बुध हो तो धनागम और चन्द्रमा भी हों तो धनागम बताना चाहिये। अन्य शुभग्रहों पर से भी यही फल कहा जायगा:
मित्रः स्वाम्युच्चमायाति नता खेटाश्च यष्टिकाः ॥१०॥
शन्यारयोगवेलायां सर्वकार्यविनाशनम् ।। मित्र स्वामो उच्च का ज्योति ग्रह हो तो खींचता है; शनि-भंगल-योग बेला में हो तो सम्पूर्ण कार्यो' का नाश करता है !
पूर्वशास्त्रानुसारेण मृत्युव्याधिनिरूपणम् ॥११॥ पूर्व कथित शास्त्र के अनुसार मृत्यु और व्याधि का निरूपण करता है।
उदयात् षष्ठमे (?) व्याधिः अष्टने मृत्युसंयुतम् ।
तत्रारूढे ब्याधिचिन्ता निधने (?) मृत्युचिन्तनम् ॥१२॥ लग्न से षष्ठ स्थान से व्याधि और अष्टम स्थान से मृत्यु का विचार करना चाहिये। इसी प्रकार आरूढ़ से भी क्रमशः षष्ठ और अष्टम हो तो व्याधि और मृत्यु का विचार करना चाहिये।
तत्तद्ग्रहयुते दृष्टे व्याधि मृत्यु वदेत् क्रमात् । पापनीचारयः खेटाः पश्यन्ति यदि संयुताः ॥१३॥
न व्याधिशमनं मृत्युं विचार्यैवं वदेत् क्रमात् । ध्याधि और मृत्यु को इस प्रकार बताना चाहिये-यदि षष्ठ स्थान और अष्टम स्थान पाप ग्रह, नीत्र ग्रह या शत्रु ग्रह से दृष्ट या युत हों तो व्याधि और मृत्यु बताना चाहिये। इनका शमन नहीं हुआ यह विचार करके बताना चाहिये।
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