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कोष्ठाकारस्तथा राशिस्तोरणं यस्य दृश्यते।
कृषिभोगी भवेत् सोऽयं पुरुषो नात्र संशयः ॥ ३२॥ जिसके हाथ में कोले का आकार, राशि, किंवा तोरण ( वन्दनवार ) का चिह्न हो वह पुरुष, निस्सन्देह, कृषिजीवी होता हैं।
दीर्घबाहुनरो योग्यः स सर्वगुणसंयुतः ।
अल्पबाहुभवेद्योऽसौ परप्रेषणकारकः ॥३३॥ जिस पुरुष की बांहे लंबी हों वह योग्य तथा सर्वगुणसम्पन्न होता है इसी प्रकार छोटी बाहुओं वाला दूसरे का नौकर होता है।
वामावर्ती भुजो यस्य दीर्घायुष्यो भवेन्नरः।
सम्पूर्णबाहवश्चैव स नरो धनवान् भवेत् ॥ ३४ ॥ जिसको भुजायें वाई ओर घुमी हों वह पुरुष दीर्घ आयु वाला तथा धनो होता है ।
ग्रीवा तु वर्तला यस्य कुंभाकारा सुशोभना ।
पार्थिवः स्यात् स विशेयः पृथ्वीशो कान्तिसंयुतः ॥३५॥ जिसकी गर्दन घड़े की भांति गोल और सुन्दर हो वह सुन्दर स्वरूप वाला राजा होगा ऐसा जानना चाहिये।
शशग्रीवा नरा ये ते भवेयुर्भाग्यवर्जिताः।
कम्बुग्रीवा नरा ये च ते नराः सुखजीविनः ॥३६॥ जिनकी गर्दन खरगोश कोसी होवे अभागे होते हैं और जिनकी गर्दन शंख जैसा हो वे मनुष्य सुखी होते हैं।
कदलीस्तंभसदशं गजस्कंधसुबन्धुरम् ।
राजानं तं विजानीयात् सामुद्रवचनं यथा ॥ ३७॥ जिसका कन्धा केले के खंभे की तरह अथवा हाथी के कन्धे की तरह भरा पूरा स्थूल होघह राजा होगा ऐसा इस शास्त्र का वचन हैं।
चन्द्रबिम्बसमं वक्त धर्मशीलं विनिर्दिशेत् । अश्ववक्त्रो नरो यस्तु दुःखदारिद्र्यभाजनम् ॥ ३८॥
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