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मीनगन्धं भवेद्रेतः स नरः पुत्रवान् भवेत् मद्यगन्धं भवेद्रेतः स नरस्तस्करो भवेत् ॥ १८ ॥ होमगन्धं भवेद्रेतः स नरः पार्थिवो भवेत् । कटुगन्धं भवेद्रेतः पुरुषो दुर्भगो भवेत् ॥१९॥ ! क्षारगन्धं भवेद्रेतः पुरुषा दारिद्र्य भोगिनः । मधुगंधं भवेद्रेतः पुमान्दारिद्र्यवान् भवेत् ॥२०॥
जिस पुरुष के वीर्य से मछली को गंध आती हो वह पुत्रवान् शराब की गंध आती हो वह चोर, होमकी गंध आती हो वह राजा, कडुई गंध आती हो वह अभागा; खारी गन्ध आती हो वह दरिद्र एवं मधु की गन्ध हो वह निर्धन होता है ।
किंचिन्मिश्रं तथा पीतं भवेद्यस्य च शोणितम् । राजानं तं विजानीयात् पृथ्वीशं चक्रवर्तिनम् ॥२१॥
ग्य
जिसका रक्त कुछ पीलापन लिये हुये हो उसे पृथ्वी का मालिक चक्रवर्ती राजा जानना चाहिये ।
मृगोदरो नरो धन्यः मयूरोदरसन्निभः ।
व्याघोदरो नरः श्रीमान् भवेत् सिंहोदरो नृपः ॥ २२ ॥
मृग और मोर की तरह पेट वाला मनुष्य भाग्यवान्, बाघ की तरह पेट वाला धनवान और सिंह के पेट के समान पेठ वाला मनुष्य राजा होता हैं ।
सिंहपृष्टो नरो यः स धनं धान्यं विवर्धयेत् ।
कूर्मपृष्ठो लभेद्राज्यं येन सौभाग्यभाग्भवेत् ॥ २३ ॥
सिंह जैसी पीठ वाला धन धान्य से युक्त और कछुये जैसी पीठ वाला राज्य सौभायुक्त होता है।
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पाण्डुरा विरला वृक्षरेखा या दृश्यते करे ।
चौरस्तु तेन विज्ञेयो दुःखदारिद्र यभाजनम् ॥ २४ ॥
पाण्डुर वर्णकी, विरल, वृक्ष के आकार की रेखा जिसके हाथ में हो वह दु:ख मौर दखिता से युक्त चोर होता है।
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