________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २ )
भुजाओं में, नेत्रो में, नखों में कानों में और नाक में दीर्घता होनी चाहिये। स्तनों में दीर्घता के साथ ही साथ कुछ ऊंचाई होनी चाहिये । इन्हीं पांच अंगो की दीर्घता प्रशस्त बताई गई है ।
ग्रीवा प्रजननं पृष्ठं ह्रस्वजंघे प्रपूरिते । ह्रस्वानि यस्य चत्वारि पुज्यमाप्नोति नित्यशः ॥ ६ ॥
गर्दन पीठ और भरी हुई जंघा ये चार अंग जिसके ह्रस्व (छोटे) होते हैं वह सदा पूजा पाता है।
सूक्ष्मान्यंगुलिपर्वाणि दन्तकेशनखत्वचः ।
पञ्च सूक्ष्माणि येषां स्युस्तेनरा दीर्घजीविनः ॥७॥
अंगुलों के पोर, दाँत, केश नख और त्वक् ( चमड़ा ) ये पांचों जिन पुरुषों के सूक्ष्म ( बारीक ) होते हैं वे दीर्घजीवी होते हैं ।
कक्षः कुक्षिश्च वक्षश्च घ्राणस्कन्धौ ललाटकम् | सर्वभूतेषु निर्दिष्टं पडुन्नतशुभं विदुः ||८||
कक्ष (कांख ), कुक्षि, ( कोंस ) छाती, नाक, कन्धे और ललाट, इन छः अंगों का ऊंचा होना किसी भी जीव के लिये शुभ हैं।
पाणिपादतले रक्ते नेत्रान्तानि नखानि च । तालु जिह्वाधरोष्ठौ च सदा रक्तं प्रशस्यते ॥ ६ ॥
हथेली, चरणों के नीचे का भाग, नेत्रों के कोने, नख, तालु, जीभ और निचले होंठ इन सात अंगों का सदा लाल रहना उत्तम है ।
नोभिस्वरं सत्वमिति प्रशस्त गंभीरमन्ते त्रितयं नराणाम् । उरो ललाटो वदनं च पुंसां विस्तीर्णमेतत् त्रितयं प्रशस्तम् ॥१०॥
नाभि स्वर और सत्व ये तीन यदि पुरुषों के गम्भीर हों तो प्रशस्त कहे जाते हैं । इसी प्रकार छाती, ललाट और मुख का चौड़ा होना शुभ होता है ।
वर्णात् परतरं स्नेहं स्नेहात्परतरं स्वरम् । स्वरात् परतरं सत्त्वं सर्वं सत्त्वे प्रतिष्टितम् ॥११॥
For Private and Personal Use Only