SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानप्रदीपिका। सेना के आगमन के विषय में भी, जो शत्रु राजा समय समय पर आया करते हैं कहता हूं-चर लग्न हो चर आरूढ़ हो और पाप ग्रह यदि पञ्चम स्थान में हों। सेनागमनमस्तीति कथयत शास्त्रवित्तमः ।। चतुष्पादुदये जाते युरो राश्युदये पिता (2) ॥२॥ तो शास्त्रज्ञ को सेना का आगमन बताना चाहिये। चतुष्पद राशि का उदय या युग्म राशि का उदय हो, लग्नस्याधिपतौ वक्र सेना प्रतिनिवर्तते। चरोदये चरारूढे भौमार्किएखो रविः ॥३॥ और लग्नेश वक्र हो तो सेना लौट जायगी। यदि लश्न भी चर हो और आरूढ़ भी चर हो और उसमें मंगल शनि और गुरु एवं सूर्य, तिष्ठति यदि पश्यंति सेना याति महत्तरा। आरूढ़े स्वामिमित्रोच्चग्रहयुक्तेऽथ बीक्षिते ॥४॥ पड़े हों या देखते हों तो बड़ी भारी सेना भी लौट जाती है। आरूढ़ यदि स्वामी, मित्र या उच्च ग्रह से युक्त हो अथवा दृष्ट हो, स्थायिनो विजयं ब्रूयात यायिनो रोगमादिशेत् । एवं छत्रे विशेषोऽस्ति विपरीते जयो भवेत् ॥५॥ तो स्थायी की जीत होगी और यायी रोगाक्रान्त होगा । छत्र में भी यही विशेषता है। इसके विपरीत होने से यायो की जय होगी। आरूढे बलसंयुक्त स्थायी विजयमाप्नुयात् । यायी बलं समायाति छत्र बलसमन्विते ॥६॥ आरूढ़ यदि बली हो तो स्थायी की और छत्र यदि बली हो तो यायी की जीत बतानी चाहिये। आरूढे नीचरिपुभिर्य हैयुक्तेऽध वीक्षिते । स्थायी परग्रहीतस्य छत्रेप्येवं विपर्यये ॥७॥ आरूढ़ यदि शत्रु नीच आदि ग्रहों से युक्त किंवा द्रुष्ट हो तो स्थायी दूसरे द्वारा गिर. फ्तार कर लिया जाता है। इससे उल्टा अर्थात् उच्च आदि ग्रहों से यदि छत्र युक्त दृष्ट हो तो भी यही फल होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.090186
Book TitleGyan Pradipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year1934
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy