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ज्ञान प्रदीपिका।
अब शीघ्र विश्वास दिलाने का कारणस्वरूप सुनारिए को बताता हूं। यदि लग्न और षष्ठ में चंद्रमा हो और उन से सप्तम में पापग्रह हों तो माता और पुत्र दोनों का मरण होता है। किंतु यदि पंचम और पष्ट में पाप ग्रह हों तो माता का मरण निश्चय होगा।
द्वादशे चंद्रसंयुक्ते पुत्रनामाक्षिनाशनम् ।
व्ययस्थे भास्करे नश्येत पुत्रदक्षिणलोचनम् ॥३॥ द्वादश में चंद्रमा हो तो पुत्र की बाई आंख और सूर्य हो तो दाहिनी आंख नष्ट होती है।
पापाः पश्यन्ति भानं चेत पितुर्मरणमादिशेत् ।
चन्द्रादित्यो गुरुः पश्येत पित्राः स्थितिरितीरयेत् ॥४॥ पाप-ग्रह यदि सूर्य को देखते हों तो पिता को मृत्यु और गुरु यदि चंद्रः सूर्य को देख ते हो तो मा-बाप को स्थिति बताना चाहिये।
यदि लग्नगतो राहर्जीवदृष्टिविवर्जितः ।
जातस्य मरणं शीघ्र भवेदत्र न संशयः ॥५॥ पदि लग्न में राहु बिना वृहस्पति की दृष्टि के हो तो पुत्र शोध ही मरेगा--इसमें संशय नहीं।
द्वादशस्थौ अर्किचंद्रौ नेत्रयुग्मं विनश्यति । षष्ठे वा पंचमे पापाः पश्यन्तीन्दुदिवाकरौ ॥६॥ पित्रोर्मरणमेवास्ति तयोर्मदः स्थिता यदि ।
भ्रातृनाशं तथा भौमे मातुलस्य भृति वदेत् ॥७॥ द्वादश स्थान में यदि शनि और चंद्र हो तो जातक की दोनों आंखें मारी जाती हैं। पंचम किंवा षष्ठ में यदि पाप-ग्रह रहें और चन्द्र सूर्य को देखें और पंचम और षष्ठ में शनि भी पड़ा हो तो मां-बाप मर जायंगे ! शनि बैठा हो तो भाई का नाश, मंगल हो तो मामा की मृत्यु बताना चाहिये।
उदयादित्रिकस्थेषु कण्टकेषु शुभा यदि । मित्रखात्युच्चवर्गेषु सर्वारिष्टं विनश्यति ॥८॥
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