________________
कार्यारम्भ के दिन उषाकाल से ही विन्ध्यगिरि पर हलचल प्रारम्भ हो गयी। पंक्तिबद्ध खड़े हुए अनेक जनों द्वारा पवित्र जल से भरे हुए बड़े-बड़े ताम्र कलश ऊपर पहुँचाकर एकत्र किये गये। पण्डिताचार्य ने उन कलशों के जल को चन्दन और केशर को सुगन्ध से मिश्रित और मन्त्रपूत किया। पुनः वे कलश उस उत्तुंग शिला के शीर्ष पर ले जाये जाने लगे। इस प्रकार मन्त्रोच्चार के साथ उन एक-सौ आठ कलशों द्वारा प्रक्षालन के साथ, शिला-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न हुई। चामुण्डराय ने आचार्यश्री की वन्दना करके, पुष्प अर्पण करके पण्डिताचार्य की विनय की, पाँच नवीन वस्त्रों और आभूषणों से रूपकार का सम्मान किया। पण्डिताचार्य ने स्वस्तिवाचन के साथ उसके माथे पर तिलक करके आशीर्वाद प्रदान करते हुए, कार्यारम्भ की शुभ घड़ी के योग का संकेत किया। ___रूपकार ने पण्डिताचार्य को श्रीफल चढ़ाकर शिला पर पहली टाँकी लगाने का उन्हीं से अनुरोध किया। जिनदेवन के हाथ में स्वर्ण थाल था जिसमें स्वर्ण की टाँकी और हथोटिका सजाकर रखे थे। टाँकी के अग्र भाग पर जटिल हीरक खण्ड, सूर्य की किरणों में दूर से जगमगा रहा था। पण्डिताचार्य ने मन-वचन-काय की शुद्धिपूर्वक महामन्त्र का जाप किया। आचार्य महाराज की वन्दना की। शिला पर पुष्प-क्षेपण करके उन्होंने थाल में से वह टॉकी उठाकर शिला के मध्य में रखी और हथोटिका का एक कोमल आघात उस पर कर दिया। टाँकी पर लगे उस आघात की ध्वनि बाहुबली की जय-जयकार के घोष में विलीन होकर रह गई। शेष रह गया उस शिला पर टंकोत्कीर्ण एक छोटा-सा चिह्न। अनुपम और अमिट।
नहीं पथिक, उस चिह्न के लिए इन दोनों विशेषणों में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है । टॉकी के उस आघात ने उस दिन निमिषमात्र में ही एक ऐसी अनोखी पुलक भर दी मेरे भीतर, जिसने मुझ जड़ में भी मानो प्राण प्रतिष्ठा ही कर दी है। आज तक अनुप्राणित है मेरा कणकण उस अनोखी पुलक से। दीर्घकाल तक मेरे भीतर उस पुलक की अनुभूति विद्यमान रहेगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
उस चिह्न के लिए 'अनुपम' और 'अमिट' बहुत सार्थक विशेषण हैं। अनुपम वह इसलिए है कि पाषाण में तक्षण का कार्य लोह उपकरणों से ही किया जाता है । हीरक टाँकी के स्पर्श से तक्षण का मंगलाचरण हो ऐसा भाग्य इस विन्ध्यगिरि का ही था। अमिट उसे इसीलिए कहा मैंने, कि फिर रूपकार ने उसी चिह्न को बाहुबली विग्रह की नाभि मानकर
५२ / गोमटेश-गाथा