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७. मेरे महान् अतिथि : वीरमार्तण्ड चामुण्डराय
नीचे जहाँ आज तुम्हारा यह श्रवणबेलगोल नगर बसा है, वहाँ उन दिनों मठ के आसपास थोड़े से आवास थे। झाड-झंखाड और नारिकेल के वृक्ष ही अधिक थे। महामात्य चामुण्डराय के सुयोग्य पुत्र जिनदेवन, सेवकों और लोक-कर्मियों का भारी समुदाय लेकर, यात्रासंघ के अग्रगामी दल के रूप में कल यहाँ आ चुके थे। आचार्य महाराज और चामुण्डराय आज पधारने वाले थे। कुशल सेवकों का भारी समूह उस सारी भूमि का संस्कार करके उस पर पट-मण्डपों का निर्माण कर रहा था। उनके अभ्यस्त हाथों से एक ही प्रहर में वस्त्रावासों की कई पंक्तियाँ वहाँ खड़ी हो गई थीं। पीछे की ओर सेवकों के लिए पर्णकुटियाँ और अश्वों, रथों के लिए स्थान बनाया गया था। एक ओर ताड़ और नारिकेल के पत्रों की छानी डालकर पाक-शाला का निर्माण भी हो चुका था।
चामुण्डराय का परिचय जानना चाहोगे? 'गंगवंशीय राजाओं का मन्त्री और सेनापति तथा इस गोमटेश प्रतिमा का निर्माता।' बस, इतिहास के झरोखे से तो इतना ही दिखाई देता है चामुण्डराय का व्यक्तित्व । पर उस प्रतापी महापुरुष के अनोखे और बहु-आयामी व्यक्तित्व के लिए यह परिचय अधूरा और अपर्याप्त ही है। वह तो अनेक प्रतिभाओं का पुंज था। मैंने अनेक बार उस परम पुरुषार्थी जैन वीर के जीवन के गौरवशाली आख्यान सुने थे।
इतिहास प्रसिद्ध गंगवंश में प्रतापी जैन राजा, जगदेकवीर धर्मावतार राचमल्ल हुआ। उसी नरेश को सत्यवाक्य चतुर्थ के नाम से भी जाना जाता है। वीर चामुण्डराय इसी गंगनरेश का मन्त्री और महासेनापति था। क्षत्रिय वंश में उत्पन्न यह महापुरुष विलक्षण राजनीतिज्ञ, कुशल सैन्यसंचालक और परम स्वामिभक्त था। वास्तव में गंग राज्य