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उनकी आज की चर्या से, उनके विगत ऐश्वर्य पूर्ण जीवन के भोगों की तुलना करते हुए, लोग उनके महान् त्याग को धन्य-धन्य कह उठते थे।
चन्द्रगुप्त मुनिराज की साधना और सल्लेखना के दो स्मृतिचिह्न आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं। उन्हीं के नाम पर मुझ चिक्कवेट्ट को 'चन्द्रगिरि' का कोमल और श्रुतिमधुर सम्बोधन प्राप्त हुआ। उन्हीं के नाम पर कालान्तर में उस छोटे से जिनालय का पुननिर्माण होने पर उसका नाम 'चन्द्रगुप्त बसदि' निर्धारित किया गया। पश्चात्वर्ती कितने ही आचार्य और मुनि, साधक और भक्त, उस अनुपम त्यागी की गुणगाथा बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ, यहाँ बैठकर दोहराते रहे हैं। उन्होंने अपने इतिहास के उन स्वर्णाक्षरों को समय-समय पर यहाँ अनेक स्थानों पर शिलांकित भी किया है। उन गुरु-शिष्यों का गुणानुवाद इस चन्द्रगिरि के लिए प्रतिक्षण नवीन है। ___ चन्द्रगुप्त के स्वर्गारोहण के उपरान्त, लगभग पन्द्रह-सौ वर्ष पश्चात् एक शिल्पकार 'दासोज' ने भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त की वह गौरव-गाथा सुन-सुनकर, उससे अनुप्राणित और प्रभावित होकर, उत्तरा-पथ से दक्षिणा-पथ के लिए उनके निष्क्रमण का सम्पूर्ण आख्यान, पाषाण-फलकों पर अंकित ही कर दिया। तुम्हारे उदार पूर्वजों ने वे शिलाफलक चन्द्रगुप्त बसदि में स्थापित करके दीर्घकाल के लिए सुरक्षित कर लिये। गागर में सागर की तरह छोटे संकीर्ण फलकों पर, उस विशाल आख्यान का अंकन, उस कलाकार की मौलिक प्रतिभा का अनुपम उदाहरण है।
मौर्य सम्राट के घटनापूर्ण जीवनवृत्त का श्रवण मुझे आज भी प्रिय है। उनकी महानताओं का स्मरण करके फिर यह स्मरण करना, कि उन महाभाग ने एक निरीह भिक्षु की तरह मेरा आतिथ्य स्वीकार किया, मुझे बड़ा सुखद लगता है। यदि उस काल तुम्हारे पूर्व-पुरुषों में अपने इतिहास को लिपिबद्ध करने के प्रति थोड़ी भी रुचि होती, तो उसे पढ़कर तुम जान पाते पथिक ! कि चन्द्रगुप्त के जीवन में कितने आरोह-अवरोह घटित हुए थे। इतिहास के उस अद्वितीय ऐश्वर्यशाली सम्राट का राजसिंहासन से असमय उतर जाना, सम्राट के मुकुट और छत्र का अनायास त्याग कर देना, अकारण नहीं था। चिन्तन की ठोस धरा पर ही सम्राट चन्द्रगुप्त के अनुपम त्याग का भवन स्थापित हुआ था।
जीवन के प्रारम्भ में अपनी महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित, चाणक्य के मार्ग-दर्शन में, उत्कर्ष की ओर एक-एक पग धरता हुआ, हर पग पर बाधाओं का संहार और कण्टकों का विमोचन करता हुआ चन्द्रगुप्त, साम्राज्य के सिंहासन तक पहुंचा था। वह सिंहासन किसी का त्यक्त उप
२० / गोमटेश-गाथा