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इस प्रकार देव, शास्त्र और गुरु की पावन त्रिवेणी का संस्पर्श, अतीत में अनवरत रूप से मुझे प्राप्त होता रहा है। वर्तमान में प्रचुरतापूर्वक हो रहा है, और मुझे विश्वास है कि भविष्य में युगान्त तक वह अविछिन्न रूप से मुझे मिलता रहेगा। ऐसा भाग्यशाली है पथिक, तुम्हारा यह चन्द्रगिरि, यह चिक्कवेट्ट।
१२/ गोमटेश-गाथा