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करते हैं कि वे मठ के लिए सहायता की घोषणा करके हमें चिन्तामुक्त करने की कृपा करें और जिनालय की आधारशिला स्थापित करके हम पर अनुग्रह करें।' __ 'पण्डिताचार्य महोदय के सहयोग के बिना तो इस कार्य में हम असहाय ही थे। हमारी धार्मिक योजनाओं में सदैव और सर्वत्र, उनका अनूपंम योगदान रहा है। 'अरिष्टनेमि' मुनिराज के रूप में वन्दनीय होकर, आज वे हमारे सामने विराजमान हैं। उनके प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन हमारा कर्तव्य है। श्रवणबेलगोल के मठ को वे सदैव प्रेरणा और परामर्श प्रदान करते रहें ऐसी हमारी उनसे प्रार्थना है।'
_ 'अन्त में एक ही विनय हमें करनी है। इस नश्वर संसार में शाश्वत कुछ भी नहीं है। एक दिन हम सबका पराभव अवश्यंभावी है। बाहुबली भगवान् की यह मूर्ति दीर्घकाल तक स्थायी हो, और सदाकाल भक्त श्रावक मिलकर इसका संरक्षण और सेवा-सम्हार करके हम पर और हमारे वंशजों पर अनुग्रह करते रहें, आगामी सहस्रों वर्षों के लिए हम यह आकांक्षा करते हैं।' ___ 'बाहुबली भगवान् आप सबका कल्याण करें।'
महामात्य का भाव-भीना वक्तव्य समाप्त होने पर गंगनरेश राचमल्ल ने हर्षपूर्वक मठ को ग्राम, स्वर्णादि की प्रचुर भेट अर्पित करते हुए, गोमटेश्वर भगवान् की पूजन-अभिषेक और प्रभावना को राज्य का उत्तरदायित्वं मानकर सदैव उसकी उत्तम व्यवस्था के आदेश प्रदान किये। उसी समय धर्मावतार राचमल्ल के यशस्वी हाथों से इस चिक्कवेट पर उस जिनालय का शिलान्यास सम्पन्न हुआ जिसे तुम 'चामुण्डराय बसदि' कहते हो।
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२१० / गोमटेश-गाथा