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करते रहेंगे। हम उनके कल्याण की कामना करते हैं।' - 'आपके महामात्य से हमें बहुत कुछ कहना है। वे हमारे बालसखा भी हैं। हमारे लिए वे 'गोमट' हैं, और गोमट ही रहेंगे। यह चामुण्डराय के पुरुषार्थ की विशेषता है कि उन्होंने सांसारिक क्षेत्र में उन्नति करने के साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी वैसा ही उत्कर्ष किया है। उनके पूरे परिवार की धर्म के प्रति अच्छी रुचि है। यह बहुत शुभ लक्षण है कि उनके पुत्र तथा पुत्रवधू में भी उनकी वंशपरम्परा के अनुरूप भगवान् जिनेन्द्र की श्रद्धा, भक्ति तथा उदारता विद्यमान है। गोमट का का शास्त्राभ्यास देखकर हमें सन्तोष होता है। बाहुबली भगवान् के इस निर्माण कार्य में धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा, उनकी भक्ति और उनकी उदारता तीनों स्पष्ट हैं। आपके महामात्य 'वीर-मार्तण्ड' तो हैं ही, ये यथार्थ में 'सम्यक्त्व-रत्नाकर' भी हैं।' ____ 'आज गोमट से हमें यही कहना है कि अब उन्हें अपना शेष जीवन आत्म-कल्याण में लगाना चाहिए। उनके जीवन का एक बड़ा भाग युद्धक्षेत्रों व्यतीत हुआ है। अब युद्धों से उन्हें विराम लेना ही है। गोमट के लिए यही हमारा आदेश, अनुरोध और परामर्श, सब कुछ है। वैसे भी यहाँ रहकर जिस चित्त ने दीर्घकाल तक बाहुबली के क्षमा-निधान रूप का चिन्तवन किया हो, उस चित्त में सांसारिक जय-पराजय का चिन्तन अब शोभा नहीं देगा। जिन हाथों ने गोमटेश भगवान के अभिषेक के कलश उठाये हों, उन हाथों में किसी के तन-मन को संक्लेशित करनेवाले उपकरण उठाने का अब कोई औचित्य नहीं होगा। शास्त्र के पत्रों से ही अब उन हाथों की शोभा है।' ___ 'गोमट के अनुरोध पर, उन्हीं के सम्बोधन के लिए हमने 'पंचसंग्रह' का लेखन प्रारम्भ किया था। अब वह रचना पूर्ण हो रही है। हम इस ग्रन्थ को 'गोम्मटसार' ही कहना चाहते हैं। बाहुबली भगवान् की प्रतिमा के निर्माण का यह महान् कार्य गोमट की जिनभक्ति, मातृभक्ति
और प्रभावना-बुद्धि का प्रतीक है। इसलिए इन बाहुबली भगवान को भी 'गोमटेश' संबोधन करके हमने इनकी वन्दना की है। वे यथार्थ में गोमट के नाथ बनकर ही यहाँ अवतरित हुए हैं।' _ 'आपको ज्ञात है कि गोमट के द्वारा अनेक स्थानों पर जिनालयों का निर्माण हुआ है। इस चन्द्रगिरि पर भी एक जिनालय के निर्माण की भावना उन्होंने व्यक्त की है। उस मन्दिर की शीघ्र प्रतिष्ठा हो, इस
गोमटेश-गाथा | २०५