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मंगलाचरण करके सभा का प्रारम्भ किया___'दीर्घकाल से आप जिसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, वह पवित्र दिवस आज उपस्थित है। मातेश्वरी की आकांक्षा के अनुरूप बाहुबली भगवान की प्रतिमा का निर्माण हो गया। उनकी प्रतिष्ठापना और महामस्तकाभिषेक भी सानन्द सम्पन्न हो गया। पूज्य आचार्य महाराज अजितसेन
और नेमिचन्द्र आचार्य के मंगल आशीर्वाद से ही यह कार्य सम्पन्न हो सका है। पूरे कर्नाटक का सौभाग्य और पुण्य ही गोमटेश के रूप में यहाँ स्थिर हो गया है। महामात्य का यह अनुपम कीति-ध्वज, दीर्घकाल तक स्थायी रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।'
यह हमारा अतिशय सौभाग्य है कि आज दोनों आचार्य भगवन्तों का चरण सान्निध्य यहाँ हमें प्राप्त है। उनके मुख से मंगल आशीर्वाद के वचन सुनने की हमारी आकांक्षा भी वे श्रीगुरु पूरी करेंगे। मैं आप सबके लिए आचार्य महाराज से आशिष की अनुनय करता हूँ।' __ आचार्य अजितसेन ने बाहुबली स्वामी की जय के साथ इन शब्दों में अपना आशीर्वाद प्रदान किया--
'गोमटेश्वर बाहुबली के दर्शन पाकर हमें अतीव आनन्द हुआ है। सहस्रों वर्षों में कभी एकाधबार अनुकूल साधन और निमित्त मिलने पर ऐसी महान् रचनाएँ सम्पन्न होती हैं। काललदेवी की उत्कृष्ट भक्ति भावना, नेमिचन्द्र की अनोखी कल्पना, चामुण्डराय की महती उदारता, शिल्पकार की अद्भुत साधना और आप सबके अतिशय पूण्य का प्रभाव, यही वे पंच समवाय हैं जिनका योग हो जाने से, पर्वत को यह शिला बाहुबली के रूप में परिणत हो सकी है। इन गोमटेश की भव्यता
और सौम्य मुद्रा हमारे मन को बहुत गहराई तक प्रभावित करती है। जो भव्य जीव एकबार भी पवित्र मन से इनका दर्शन करेंगे, थोड़े ही काल में वे अवश्य कल्याण की प्राप्ति करेंगे।' ____ 'आपके आचार्य नेमिचन्द्र ने इस प्रतिमा के निर्माण की प्रेरणा देकर बड़ा काम किया है। ज्ञान, ध्यान और तप में निरन्तर संलग्न रहकर ये महाराज उत्कृष्ट साधना कर रहे हैं, देव-शास्त्र-गुरु की प्रभावना के लिए श्रावकों को प्रेरणा देते रहना हितोपदेशी गुरु की आर्ष-परम्परा है। इनका तल-स्पर्शी आगम ज्ञान देखकर तो हमें अतीव संतोष हुआ है। चक्रवर्ती नरेश जिस प्रकार पृथ्वी के छह खण्डों पर अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं, उसी प्रकार षटखण्ड आगम पर नेमिचन्द्र ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। वे तो सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं।'
'महामात्य चामुण्डराय के इस कार्य की जितनी भी सराहना
गोमटेश-गाथा | २०१