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४५. समापन समारोह
इसी भमि पर, जहाँ तुम अभी बैठे हो, उस दिन मध्याह्न में इस प्रतिष्ठापना महोत्सव का समापन समारोह आयोजित हुआ। गंगनरेश धर्मावतार राचमल्ल और गुणरत्नभूषण चामुण्डराय बड़ी धूम-धाम से गुरु-वन्दना के लिए इस चन्द्रगिरि पर आये। सहस्रों नर-नारियों का समूह एक बड़े चल समारोह के रूप में, पूरे मेले का भ्रमण कराता हुआ उन्हें नीचे उस स्वागत द्वार तक लाया। मार्ग में पग-पग पर पुष्प-गुच्छकों से, मालाओं से, और रोली-तिलक आदि से उनका स्वागत किया गया। सुहागिन स्त्रियाँ मंगल-कलश और दीप आरती लेकर स्थान-स्थान पर उनकी अगवानी के लिए खड़ी थीं।
चल समारोह की भव्यता बहुत निकट से मैं देखता रहा। राजसी ऐश्वर्य से युक्त गंग राज्य के मदमाते गजराजों का समूह, पंक्तिबद्ध चल रहा था। स्वर्णमण्डित उनके अग्रदन्त, बाल रवि की स्वर्णिम किरणों की तरह दूर से दिखाई देते थे। उनकी पीठ पर लटकती मखमली झूलों पर मणि-मुक्ताओं का बाहुल्य था। मंगल वादकों का समूह सबसे आगे था। आगे के गजों पर ध्वज, कलश, भेरी आदि मंगल द्रव्य शोभित थे। बीच में एक विशालकाय, सुन्दर गज की पीठ पर स्वर्ण-विमान में, मरकत मणि की, भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा विराजमान थी।
उज्जयिनी से आये एक कलाकार ने गोमटेश भगवान् का एक विशाल पट-चित्र अपनी अभ्यस्त तूलिका से चित्रित कर दिया था। काष्ठाधार पर मढ़कर उस विशाल पट-चित्र को एक शकट पर स्थापित किया गया। शकट को धवल-धुरन्धर, श्वेत वृषभों की जोड़ी खींच रही थी। दीक्षा के उपरान्त तो एक पग भी बाहुबली का बिहार नहीं हुआ था। चल समारोह में उस जीवन्त चित्र को देखकर लगता था कि भक्तों की