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थोड़े-से रक्ताभ पुष्प बिखरे पड़े थे, औरउन ही पुष्पों की एक सीधी सुघड़ पंक्ति पीछे की सीढ़ियों पर ऐसी सजी थी, जैसेउस पथ से अभी-अभी कोई दिव्यांगना, (लाल-लाल आलता विनिन्दित पद-पद्मों कीछाप छोड़ती-सी) उतरती चली गयी हो।
१६० / गोमटेश-गाथा