________________
४०. प्रतिष्ठापना-महोत्सव
गोमटपुर
प्रारम्भ में जब यहाँ मूर्ति के निर्माण का कार्यारम्भ हुआ था, तभी से महामात्य का वह अस्थायी कटक एक सुविधा सम्पन्न ग्राम के रूप में परिणत होना प्रारम्भ हो गया था। अनेक वस्त्रावास और पट-मण्डप, धीरे-धीरे पाषाण निर्मित स्थायी भवनों का रूप प्राप्त कर चुके थे। अब तक वहाँ जिनालय और दानशाला, औषधालय और पाठशाला, सभागार और प्रेक्षागृह, कूप और जलाशय, सब अस्तित्व में आ चुके थे। अन्न, वस्त्र और भाण्ड आदि के विनिमय के लिए, उधर जलाशय के किनारे, जो छोटी-सी हाट प्रारम्भ में बस गई थी, अब उसका भी विस्तार हो रहा था। क्रेता और विक्रेता, दोनों की संख्या वहाँ प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। महामात्य के नाम पर यह श्रवणबेलगोल अब 'गोमटपुर' के नाम से विख्यात होता जा रहा था। महोत्सव में पधारनेवाले अतिथियों के लिए चारों ओर दूर-दूर तक अस्थायी वस्त्रावास और पत्र-मण्डप बनाये जा रहे थे।
स्निग्धता का संस्कार
विन्ध्यगिरि पर बाहुबली प्रतिमा को स्निग्धता प्रदान करने का कार्य चल रहा था। यही वह प्रक्रिया थी जिसने सहस्रों वर्षों के लिए इस अनूपम कलाकृति को प्राकृतिक क्षरण से और काल के विनाशक प्रभाव से सुरक्षित रखने का कार्य किया है। देखते हो न, आज भी उस प्रतिमा में सद्य निर्मित मति जैसी ही चमक-दमक विद्यमान है। ___ सर्वप्रथम उन लोगों ने पाषाण-चूर्ण का मिश्रण लगाकर, काष्ठ के गीले गुटकों से पूरी प्रतिमा का घर्षण और मार्जन किया। पश्चात् अनेक