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गोमटेश गाथा
'जैन की धर्म की प्रभावना, जैन साहित्य का प्रसार, और जैन संरक्षण, यही आज के युग का सर्वोत्कृष्ट धर्म है। यही गृहस्थों का रत्नत्रय है।'
-कहते थे आचार्य अजितसेन . 'असीम आकांक्षाओं के वशीभूत, महत्वाकांक्षाओं की महाज्वाला में झुलसते हुए, साम्राज्य का प्रासाद खड़ा किया, परन्तु यह मन को सुख का तनिक भी संवेदन नहीं दे पा रहा । संतोष का परिग्रह के साथ, निराकुलता का वैभव के साथ क्या दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं ?'
-विचारते थे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य 'यह श्रवणबेलगोल तो शाश्वत और पवित्र तीर्थ है। बाहबली की यह प्रतिमा कला-जगत की अनोखी निधि है । हमने और आपने मिलकर जैसे आज यह महोत्सव यहाँ देखा है, उसी प्रकार हमारे और आपके वंशज ऐसे अनेक महोत्सव यहाँ देखें । दीर्घकाल तक इन भगवान की पूजा, आरती-अभिषेक वे करते रहें, हम यही कामना करते हैं।'
-प्रतिष्ठापना महोत्सव में कहा चामुण्डराय ने 'जिस चित्त ने दीर्घकाल तक बाहुबली के क्षमानिधान रूप का चिन्तवन किया है, उस चित्त में सांसारिक जय-पराजय का चितवन अब शोभा नहीं देगा।'
जिन हाथों ने गोमटेश्वर भगवान के महाभिषेक के कलश उठाये हैं, उन हाथों में किसी के तन-मन को संक्लेशित करनेवाले उपकरण उठाने का अब कोई औचित्य नहीं है। शास्त्र के पत्रों से ही अब उनकी शोभा है।'
-चामुण्डराय से कहा था नेमिचन्द्राचार्य ने
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