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क्षण भी नहीं लगा। वे धीर गम्भीर महापुरुष, नितान्त निरपेक्ष भाव से, इस युद्ध को कौतुक-सा ही लेखते थे। स्वाधीन वृत्तिवाले निष्कांक्षित व्यक्ति का मस्तक, शक्ति के प्रयोग से काटा जा सकता है, पर झुकाया नहीं जा सकता, इस यथार्थ को चरितार्थ करके दिखा देने के लिए वे कृतसंकल्प थे । अनिश्चय, दुविधा या आतंक उनके मन में नहीं था। अनीति का प्रतिरोध और स्वाभिमान की रक्षा हेतु, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी चनौती को स्वीकारने के लिए वे चट्टान की तरह अडिग थे। उन्होंने उभय पक्ष के अमात्यों द्वारा प्रस्तुत द्वन्द्व युद्ध का वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। युद्ध के प्रकार और नियम निर्धारित करने का कार्य भी उन्होंने उसी अमात्य परिषद पर छोड़ दिया।
रात्रि विश्राम के पूर्व ही महामन्त्री ने घोषणा कर दी
'सर्वप्रथम दृष्टि-युद्ध होगा। दोनों वीर एक दूसरे पर निर्निमेष दृष्टिनिक्षेप करेंगे। जिसके पलक मुंद जायेंगे वह पराजित माना जायेगा।
जलयुद्ध इस शक्ति-परीक्षण का दूसरा प्रयोग होगा। सरोवर में खड़े होकर दोनों को एक दूसरे पर हाथ से जल निक्षेप करना है। जल की सशक्त बौछारों से जो विचलित हो जाये, उसे अपनी पराजय स्वीकार करनी होगी। ___ मल्ल-युद्ध अंतिम और निर्णायक संघर्ष होगा। मल्ल-विद्या के नियमों से प्रतिबद्ध दोनों सुभट अपनी शरीर शक्ति से एक-दूसरे को धराशायी करने की चेष्टा करेंगे। जो अपने प्रतिद्वन्द्वी को गिराने में सफल हो जायगा, विजयश्री उसी की दासी होगी।' दृष्टि-युद्ध ___ वन के विस्तृत प्रांगण में एक मंच पर भरत और बाहुबली आमनेसामने उपस्थित हुए। मंच के चारों ओर अयोध्या और पोदनपुर के सेनाध्यक्ष, अमात्यगण और प्रमुख पार्षद बैठे थे। इस अभूतपूर्व युद्ध को देखने के लिए उत्सुक सैनिकों का समूह चारों ओर एकत्र हो गया।
दीर्घ अन्तराल के उपरान्त दोनों भ्राताओं को एक साथ देख पाना बहुतों को सुखद लगा । अयोध्या की सेना में ऐसे अनेक सैनिक थे जिन्हें आज प्रथम बार बाहबली का दर्शन मिला था। कामदेव का वह दिव्य सुन्दर रूप निहारकर वे ठगे से रह गए। जिस प्रसंग में यहाँ एक बन्धुमिलाप हो रहा है उस अप्रिय प्रसंग का स्मरण आते ही अनेकों का मन सिहर उठा। महामन्त्री अपने मन की विकलता पर नियन्त्रण नहीं रख पाये। वे अपने स्वामीपूत्रों की इस युगल जोड़ी को अपलक निहार रहे
गोमटेश-गाथा | ६१