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________________ - : अर्थ-(चउतीस वियढेसु) वैताब्यनामके चोतीश पर्वतांपर, व (विजुष्पह) विद्युत् पभ नामका गजदंत गिरि " स्तथा (निसढ) निषध गिरि स्तथा (नीलवंतेसु) नीलवंत गिरि (तह) तेसेहि (मालवंत) माल्यवंत नामका गजदंत । || गिरिस्त था (सुरगिरि) मेरुगिरि, यह एक कम चालीश पर्वतांपर (पत्तेयं) प्रत्येके २ (नव नव कूडाई) नव नब कूट है । एवं पूर्वके और यह मिलकर (४४५) कूट हुए ॥ १४ ॥ | भावार्थ-चोतीश लम्बे वैताढ्य व एक विद्युत्प्रभ, दुसरा निषध, तीसरा नीलवंत, चोथा माल्यवंत पांचमा सुमेरु इन उन चालीश पर्वतांपर, नव २ कूट होनेसे तीनसो कावन कूट हुए, और पूर्वके मिलानेसे (४४५) कूट। होते है ॥ १४ ॥ है। हिम सिहरिसु इक्कारस, इय इगसट्ठि गिरीसु कूडाणं। एगते सबधणं, सय चउरो सत्तसट्ठीयं ॥१५॥ * अर्थ-(हिम ) हिमवंत गिरिस्तथा (सिहरिसु) शिखरी पर्वत, इन प्रत्येकपर (इकारस) इग्यारा २ कूट है, (इय) का यह (इगसठि गिरीसु) सर्व इगसद्ध पर्वतोंपर जो (कूडाणं) कुट हैं उसको (एगचे) एकत्व करणेसे (सधधणं ) सर्व ।। संख्या ( सयचउरो) च्यारसे ( सत्तसष्ठीयं ) सडसठ कूट (शिखर) होते हैं ॥ १५॥ भावार्थ-हिमवंत और शिखरी इन दोनों पर्वतोपर इग्यारा २ कूट है, एवं सर्व इगसठ पर्वतांपर ग्यारसो सडसठ (४६७) कूट होते है ।। १५॥
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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