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________________ है तेसठ खंडवा होते है, "इसीतरह" (बीयपासेवि ) दुसरी तर्फभी "एक खंडवा एरवत क्षेत्रका दो शिखरी पर्वतके चार ऐरण्यवत क्षेत्रके आठ रूपी पर्वतके, शोला रम्यक क्षेत्रके बत्तीस नीलवंत करके तीसरा वर्ष धर पर्वतके, एवं * 18 यह तेंसठ खंडवा तथा (घउसडिओ) चौसठ खंडवा (विदेहे) महाविदेह क्षेत्रके यह सर्व (तिरासि) तीनो राशीके। दि खंडवा (पिंडेइ ) मिलानेसें (णउयसम) एकसोने निचे खंडवा होते है इति प्रथम द्वारम् ॥ ५ ॥ HINI भावार्थ-बत्तीश खंडवा भाग निपध पर्वत इसके साथ ऊपरकी गाथाके खंडवा भाग मिलानेसे (तेसठ्ठ) खंडवा भाग होते है । इसीतरह, दुसरी तर्फ १ खंड भाग एरव २ खंड भाग शिखरी पर्वत ४ क्षेत्र भाग ऐरण्यवत, आठ खंडवा भाग, रूपी पर्वत १६ खंडवा भाग, रम्यक क्षेत्र ३२ खंडवा भाग नीलवंत और ६४ खंडवा भाग महाविदेह । इतनासबकी गिणना की जाय तो, एकमो निये (१९०) खंडवा होते है ॥५॥ जोयण परिमाणाई, समचउरंसाई इत्थ खंडाई । लरकस्सय परिहीए, तप्पाय गुणेय हुंतेव ॥६॥ | अर्थ-(इत्थ) यहां जंबुद्वीपके अन्दर (जोयण परिमाणाई) एक योजनके प्रमाणवाले (समचउरंसाई) समच तुरस्र (खंडाई) खंडवा कितने होंगे? उसकी रीति कहते हैं। I (लख्खस्स) एक लाख योजनकी (परिहीए) परिधिका जो अंक आय उसको (तप्पाय) तत्पाद याने क्षेत्रके चौथे है|हिस्सेसे जैसें लाख योजनके जंबुद्वीपका चोथाहिस्सा २५ हजार योजन होता है. उससें (गुणेय ) गुणाकार करणेपर *गणितपद(क्षेत्रफल )का प्रमाण (हुंतेव) निश्चय होता है ॥ ६ ॥
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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