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खंडा जोयणवासा, पव्वय कुडाय तित्थ सेढीओ।विजय दह सलिलाओ, पिंडेसि होइ संघयणी॥२॥ | अर्थ-प्रथम भरतक्षेत्रवत् इस जंबुद्धीपमें कितने (खंडा) खंडवा है ? द्वितीय (जोयण ) योजनका प्रमाण, त्रितीय भरतादिक (यास ) वाशक्षेत्र कितने है ? चोथा वैताठ्यादिक (पञ्चय) पर्वत कित्ते है ? पांचमा उन पर्वतोपर (कुडाय) कूट (शिखर ) कितने है ? छडा मागधादिक (तित्थ ) तीर्थ कितने है ? सातमा, वैताड्यादिक पर्वतोपरि रहिहुई, विद्या|धरो व आमियोगिक देवॉकी (सेढीओ) श्रेणियें कितनी है? आठमें कच्छादिक (विजय) विजय कितना है? नवमें पद्मद्रहादि (इह) द्रह कितने है ? दशमें गङ्गासिंध्यादि (सलिलाओ) नदीयें कितनी है ? एवम् इसी दशो द्वारोंको। (पिंडेसि ) इकछायाने समुदायके विवरणकरके यह (संघयणी ) संग्रहिणी नामका प्रकरण ( होइ) होता है ॥२॥ | भावार्थ-पहेला द्वारमें भरत क्षेत्रके मुत्ताविक जंबुद्वीपमें कितने खंड है। दुसरेमें योजनका प्रमाण. तीसरेमें वासहै। क्षेत्र. चोथेमें पर्वत. पांचमें उन पर्वतोपर शिखर. छठेमें तीर्थ. सातमें श्रेणियों की संख्या. आठमें विजय. नवमे द्रह,
दशमें नदिये. इनहीं दशोद्धारोकरके यह संघयणी प्रकरण होता है ॥२॥
णउअ सयं खंडाणं, भरह पमाणेण भाइए लक्खे।अहवा णउयसयगुणं, भरह पमाणं हवइ लक्खं ॥३॥ AI अर्थ-(लख्खे ) एकलाख योजनका जंबुद्वीप उसको (भरहपमाणेण) भरतक्षेत्रके प्रमाणसें, “याने पांचसो छधीश
योजन छकलासे" (भाइये) भांगाकार करें तो (गउआ सयं खंडाणी ) भरतक्षेत्रके मुताबिक "एकसो और निवे"
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CRIKRAM
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