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मनुष्यके विषे तो चक्षुदर्शन अचधुदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन ऐसे चारोही होते है ( सेसेमुतिगंतिगंभणियं ) बाकी के सब दंडको के विषे केवल वर्जके तीनतीन दर्शन कहा है ।। इति चोवीश दंडक के ११-१२ - दर्शनद्वार ॥ १९ ॥ अन्नाणनाणतियतिय सुरतिरिनिरएथिरेअनाणदुगं । नाणा न्नाणदुविगले मणुए पणनाणतिअनाणा॥२०॥
( अन्नाणनाणतियतिय ) तीन अज्ञान और तीन ज्ञान (सुरतिरिनिरए) देवताको तथा तिर्यंच और नारकके होते. है (थिरे अनाणदुर्ग ) और स्थावरको मति तथा श्रुत ऐसे दो अज्ञान होते है (नाणान्नाणदुविगले ) दो ज्ञान तथा दो अज्ञान विकलेंद्रिको होते हैं ( मणुपपणनागतिअनाणा ) और मनुष्यको तो पांच ज्ञान और तीन अज्ञान एसे आठोही, होते है । इति चौवीश दंडकमें ज्ञान अज्ञानद्वार १३ ॥ २० ॥
इकारसुरनिरए तिरिएसुतेरपनरमणुएसु । विगलेचउपणवाए जोगतियंथावरेहोई ॥ २१ ॥
( इक्कारससुर निरए) देवता और नारकको इग्यारे योग होते है ( तिरिएमुतेर ) तिर्यचको तेरह ( पनरमणुएस ) और मनुष्यको पन्द्रेही योग होते है ( विगलेचड ) विकलेंद्रिको चार (पणवाए) बाउकायको पांच ( जोगतियंथावरेहोइ ) और स्थावरको तीन योग होते है ।। इति चोवीश दंडकके योगद्वार १४ ॥ २१ ॥ उवओगामणुसु बारसनव निरयतिरियदेवेसु । विगलदुगेपणछकं चउरिंदिसुथावरेतियगं ॥ २२ ॥ (उओगामणुए ) मनुष्यके विषे उपयोग ( वारस ) बारह होते हैं ( नयनिरयतिरियदेवेसु) नारक तिर्यच और