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________________ * १२ (आइतितणु) आदिके तीन शरीरका ( णुवंगा) अंगोपांग १५ (आइमसंघयणसंठाणा) आदि वरिपभनाराच संधयण १६ और प्रथम संस्थान समचोरस १७ ॥१५॥ I वपणचउकागुरुलहु परघाऊसासआयवुजोय।सुभखगइनिमिणतसदस सुरनरतिरियाउतित्थयरं ॥१६॥ | (चण्णचक्का) शुभवर्णादिचार २१ ( अगुरुलहु) अगुरुलघु २२ (परघा) परापातनाम कर्म २३ (ऊसास ) स्वासो-12 स्वास नामकर्म २४ (आयव) आताप नामकर्म २५ (उज्जोयं) उद्योतनामकर्म २६ (सुभखगइ) शुभविहायोगति | जिस कर्मके उदयसें जीवकी हंससमान चाली हो २७ (निमिण) निर्माण नामकर्म २८ (तसदस) त्रस दशक ३८ इससे दशकेका भेद आगेकी गाथासें कहेंगे (सुर) देवआयु नामकर्म ३९ (नर) मनुष्यआयु नामकर्म ४० (तिरियाउ) तिर्यचआयु नामकर्म ४१ (तित्थयरं) और तीर्थकरनामकर्म ४२ ॥ १६ ॥ तसवायरपजत्तं पत्तेयधिरंसुभंचसुभगंच । सुस्सरआइजजसं तसाइदसगंइमहोइ ॥ १७ ॥ (तस) बसनामकर्म १ (बायर) बादरनामकर्म २ (पज) पर्याप्तनामकर्म एक लवधि पर्याप्ता दुजाकरणपर्याप्ता, ऐसे दो भेद ३ (पत्तेय) प्रत्येकनामकर्म ४ (धिर) स्थिरनामकर्म ५ (सुभं) शुभनामकर्म ६ (च) और (सुभगं) सौभाग्यनामकर्म ७ (च) और (सुस्सर) सुस्वरनामकर्म जिसका स्वर कोकिलाकी तरह मधुर हो ८ (आइजात आदेयनामकर्म ९ (जसं) यशकीर्तिनामकर्म १० ( तसाइ) त्रस आदिक (दसर्ग) दशक (इमहोइ) इस प्रकारमें है। ॥ १७ ॥ इतिपुण्यतत्त्वम् ॥
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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