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________________ के बयालीस भेद (बासीय) पापतत्त्व ४ के ब्यासी भेद (हृति) है (वायाला) आश्रयतत्व ५ के बयालीस भेद है| (सत्तावन्नं ) संवरतत्त्व ६ के सत्तावन भेद (वारस) निर्जरातत्त्व ७ के बारह भेद (चउ) बंधतत्त्व ८ के चार भेद (नव ) और मोक्षतत्त्व ९ गाना (मेयर) है लोगोलि ) अनुहारसे नवे तत्त्वका सब मिलकर २७६ भेद है ॥२॥ एगविहदुविहतिविहा, चउचिहापंचछविहाजीवा । चेयणतसइयरेहिं, वेयगई करणकाएहि ॥३॥ (एगविह) चेतना लक्षणसें सब जीवो एक प्रकारे है (दुविह ) त्रस और स्थावरपणेसे जीवोंके दो भेद है (तिविहा) | | स्त्रीधेद पुरुषवेद और नपुंसकवेदसें जीवोंके तिन भेद है (घउबिहा) देव मनुष्य तिर्यंच और नारक इसप्रकारसें जीव चार तरहका (पंच) एकेन्द्रि आदिसें जीव पाँच तरहका (छबिहा ) पृथ्वी आदि लेकर छे तरहका (जीवा) जीव है। (चेयण) ज्ञानादि चेतना सहित (तस) त्रस हलते चलते सो (इयरेहिं) इतर स्थिर रहे सो स्थावर (वेय) तीन वेद (गई) चार गति (करण) इंद्री पाँच (काएहिं ) काया छ ॥३॥ 18 एगिंदियसुहुमियरा सन्नियरपणिदियायसबितिचउ । अपजत्तापजत्ता कमेणचउदसजियठाणा ॥४॥ 18(एगिंदिय) एकेन्द्रि जीवोंके दो भेद है (सुहुमियरा) एक सूक्ष्म और दुसरा बादर (सन्नि ) मन सहित (इयर) | * दुसरा असंनि मन रहित ऐसे ( पणिंदियाय) पंचेन्द्रिके दो भेद है (स) उस पूर्वका चारकी साथ (वि) द है (स) उस पूर्वका चारकी साथ (वि) बेइंद्रीका एक भेद (ति) तेइंद्रीका एक भेद (पउ) चौरिद्रीका एक भेद यह तीन मिलानेसें सात हुवा ( अपजत्तापजता) वह
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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