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भावार्थ-देव और नरकवासी जीव, अधिकसे अधिका, तेतीस सागपा सक जीते हैं और चतुष्पद तिर्यञ्च तथा मनुष्य तीन पल्योपम तक; ये तिर्यश्च तथा मनुष्य देवकुरु आदि क्षेत्रोंके समझना चाहिये. देव तथा नारक जीवोंका जघन्य आयु-कमसे कम आयु-दस हजार वर्षका है। मनुष्य तथा तिर्यश्च जीवोंका जघन्य आयु, अन्तर्मुहुर्तका है. । जलयर-उरभुयगाणं, परमाऊ होइ पुत्वकोडीऊ । पक्खीणं पुण भणिओ, असंखभागो अपलियस्स ३७ ।
(जलयर-उरभुयगाणं ) जलचर, उरःपरिसर्प और भुजपरिसर्प जीवोंकी (परमाऊ) उत्कृष्ट आयु (पुषकोडीऊ) | एक करोड़ पूर्व है, (पक्खीणं पुण) पक्षियोंकी आयु तो (पलियस्स ) पस्योषमका (असंखभागो) असंख्यातवाँ भाग जितनी (भणिओ) कहा है ॥ ३७॥ __ भावार्थ-गर्भज और सम्मूछिम ऐसे दो प्रकारके जलचर जीवोंका तथा गर्भज, उर परिसर्प और भुजपरिसर्प जीयोंकी उत्कृष्ट आयु एक करोड़ पूर्व है। गर्भज पक्षियोंका आयु पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग जितना है. सवे सुहमा साहा-रणा य, संमुच्छिमा मणुस्सा य । उक्रोस जहन्नेणं, अंतमुहुत्तं चिय जियंति ॥३८॥ R (सवे) सम्पूर्ण (सुहुमा) पृथ्वीकाय आदि सूक्ष्म (य) और (साहारणा) साधारण वनस्पतिकाय (य) और।
(समुच्छिमा मणुस्सा) संमूछिम मनुष्य (उकोस जहन्नेणं) उत्कृष्ट और जघन्यसे (अंतमुहुत्तं चिय) अन्तर्मुहूर्त ही (जियंति) जीते हैं ॥ ३८॥
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