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काया, (ठिई) स्थितिका प्रमाण अर्थात् स्वकायस्थिति-प्रमाण, (पाणा) प्राण-प्रमाण और (जोणिपमाण) योनिप्रमाण, (जेसिं) जिनोंके, (जं अस्थि) जितने हैं, (तं) उसे, (भणिमो) कहते हैं ॥ २६ ॥
भावार्थ-पहले एकेन्द्रिय आदि जीव कहे गये हैं, उनके शरीरका प्रमाण, आयुका प्रमाण, स्वकायस्थितिका 5 प्रमाण-केन्द्रियादि जीवोंका पर कर फिर हमी कायमें पैदा होना, 'स्वकायस्थिति' कहलाता है उसका प्रमाण | प्राण-प्रमाण-दस प्राणोंमेंसे अमुक जीवको कितने प्राण है इसकी गिनती; योनि-प्रमाण-चौरासी लाख योनियोंमेंसे किन किन जीवोंकी कितनी कितनी योनियाँ हैं इस विषयकी गिनती; ये बातें आगे कही जायँगी.
अंगुलअसंखभागो, सरीरमेगिदियाण सवेसिं । जोयणसहस्समहियं, नवरं पत्तेयरुक्खाणं ॥ २७ ॥ RI (ससि) सम्पूर्ण (एगिदियाण ) एकेन्द्रियोका (सरीरं) शरीर (अंगुल असंखभागो) उँगलीके असंख्यातवें भाग ६
जितना है, (नवरं ) इतनाविशेषहैं लेकिन (पचेयरुक्खाणं) प्रत्येकवनस्पतियोंका शरीर, (जोयणसहस्समहियं) हजारयोजनसे कुछ अधिक है ॥ २७॥ .
भावार्थ- सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवोंका शरीर-प्रमाण, उँगली के असंख्यातवें भाग जितना है, लेकिन प्रत्येक वनस्पतिकायके जीवोंका शरीरममाण, हजार योजनसे कुछ अधिक है। यह प्रमाण समुद्रके पद्मनालिका तथा ढाई द्वीपसे बाहरकी लताओंका है.
PRESEMESS
NECRAC
KAGAR