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________________ नचा परिणामें परिणमे छे. तिहां पूर्वपर्यांयने विनाशे अने उत्तरोत्तर नवा नवा पर्यायने प्रगटवे एवी जे द्रव्यनी परिणति तेनुं मूलकारण वे अध्याय कहिये. तिहां तवार्थटीका मध्ये कह्यो छे. इहां द्रव्यानुयोगने विषं भाव धर्मने विषे एटले गुण पर्यायने विषे द्रव्य ते भव्य के० भवन थयो एटले नवो नीपजवो ते भवन इति के० एम वस्तुना गुणपर्याय जे छे ते भवन के० नवो थवारूप समवस्थान मात्र के एटले नवा नवा थावारूप छे. तिहां दृष्टांत कहे छे, जे पुरुष उत्थित के० ऊठ्यो आसीन के० फरी तेहिज बेठो, बेसवुं ते पद्मासन कहियें, अथवा उकडवं ते आसनसहित सूवुं जेम इत्यादिक पर्यायें ते पुरुष धाय छे तेम तेहज वृत्त्यंतर के पूर्व पर्यायनो विनाश अने उत्तर पर्यायनो उपजवो ते वृत्त्यंतर कहियें, वृत्त्यंतर व्यक्तिरूपपणे उपदेशे छे ते भवनधर्मनी प्रवृत्ति कहे छे, जायते के० नवो उपजे अस्ति | के० छतिपणे रहे. विपरिणमते के बीजापणे परिणमे बली सामर्थ्य धर्मे बधे अने अपक्षीयते के० घंटे विनश्यति के० विनाश पामे पिंड के० समुदायपणो तेथी अतिरिक्त के० बीजी वृत्ति जे गुणनी प्रवृत्त्यंतरनी अवस्थाने प्रकाश थवे करीने जे भवणपणो थाय एटले ठेरी जे भवनवृत्ति ते सव्यापार पण निर्व्यापार नथी. अस्ति ए चने निर्व्यापार आत्मशक्ति छे ते कहियें हैयें. ते पण भवनवृत्तिथी उदासीन हे एटले भवनवृत्तिने ग्रहण | करती नथी. अस्ति शब्दने निपातपणो छे, विपरिणमते ए वचने तिरोभूत के० अणप्रगटी जे वस्तु तेमां तद्रूपपणे अनुच्छिन्न के० विच्छेद गई. तथा वृत्तिकस्य के० ते रीतें वर्तति आत्मशक्ति तेनो रूपांतरें थवो ते भवन कहियें. तिहां दृष्टांत जेम क्षीर ते दूध दधिभावें परिणमे विकारांतरे थवो ते रीतें रहे ए भवनधर्म कहियें. जे ज्ञानादिपर्यायमां अनं 3
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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