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________________ . M - प्रवर्त्तन छे अथवा वली अनेकांतजयपताका ग्रंथने विपे एम पण कधु छ जे प्रतिसमये गुणने विषे कारणपणो नवो नवो उपजे छे एटले कारणपणानो पण उत्पाद व्यय छे तेमज प्रतिसमये कार्यपणो पण नवो नवो उपजे छे, एटले कार्यपणानो पण उत्पाद व्यय छे एम सर्वद्रव्यने विषे सर्वगुणनो कार्यपणो कारणपणो उपजे विणसे छे, एम उत्पाद व्ययनो एक स्वरूप प्रथम भेद कधी. तथाच सर्वेषां द्रव्याणां पारिणामिकत्वं पूर्वपर्यायव्ययः नवपर्यायोत्पादः एवमप्युत्पादव्ययौ द्रव्यत्वेन ध्रवत्वं इति द्वितीयः॥ अर्थ-सर्व धर्म छे ते परिणामिक भावे छे. तिहां पूर्व पर्यायनो व्यय अने नवा पर्यायनो उत्पाद आप्रकारे उत्पाद शि व्यय समय समये छे अने द्रव्यपणो ध्रुव छे ए वीजो भेद. प्रतिद्रव्यं खकार्यकारणपरिणमनपरावृत्तिगुणप्रवृत्तिरूपा परिणतिः अनन्ता अतीता एका वर्तमाना अन्या अनागता योग्यतारूपास्ता वर्तमाना अतीता भवन्ति अनागता वर्तमाना भवन्ति शेषा अनागता कार्ययोग्यतासन्नतां लभन्ते इत्येवंरूपावुत्पादव्ययौ गुणत्वेन ध्रवत्वं इति तृतीयः । अत्र केचित् कालापेक्षया परप्रत्ययत्वं वदन्ति तदसत् कालस्य पञ्चास्तिकाय
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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