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*HAKAK-4*
भावार्थ-आकाशमें उड़नेवाले तिर्यश्च, खेचर कहलाते हैं, उनके दो भेद है;-रोमजपक्षी, और चर्मजपक्षी. रोमसे | जिनके पङ्ख बने हैं ये रोमजपक्षी, जैसे-तोता, हंस, सारस आदि. चामसे जिनके पङ्ख बने हैं ये चर्मजपक्षी, जैसे-चमगादड़ आदि. जहाँ मनुष्यका निवास नहीं है, उस भूमिमें दो तरह के पक्षी होते हैं;-समुद्गपक्षी और विततपक्षी. सिकुड़े हुए, जिनके डब्बेके समान पङ्ख हों, वे समुद्गपक्षी. जिनके पङ्क फैले हुए हों, वे विततपक्षी कहलाते हैं. सवे जल-थल-खयरा, संमुच्छिमा गम्भया दुहा हुंति । कम्माकम्मगभूमि, अंतरदीवा मणुस्सा य ॥२३॥
(सधे ) सब (जलथलखयरा ) जलचर, स्थलचर, और खेचर ( समुच्छिमा) सम्भूछिम, (गम्भया) गर्भज (दुहा) | द्विधा-दो प्रकारके (हुति ) होते हैं. (मणुस्सा) मनुष्य (कम्माकम्मग भूमि) कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज (य) और (अंतरदीवा) अन्तद्वीपवासी हैं ॥ २३ ॥
भावार्थ-पहले तिर्यञ्चके तीन भेद कहे हैं: जलचर, स्थलचर, और खेचर. ये तीनों दो दो प्रकारके हैं; संमूछिम, और गर्भज. जो जीव, मा-वापके बिना ही पैदा होते हैं, वे संमूच्छिम कहलाते हैं. जो जीव, गर्भसे पैदा होते हैं वे गर्भज. मनुष्यके तीन भेद हैं, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, और अन्त:पनिवासी. खेती, व्यापार आदि कर्म-प्रधान / भूमिको कर्मभूमि कहते हैं । उसमें पैदा होनेवाले मनुष्य, कर्मभूमिज कहलाते हैं; कर्मभूमियाँ पन्दरह हैं। पाँच भरत पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह. जहाँ खेती, व्यापार आदि कर्म नहीं होता उस भूमिको अकर्मभूमि कहते हैं, वहाँ | पेदा होनेवाले मनुष्य अकर्मभूमिज कहलाते हैं; अकर्मभूमियोंकी संख्या तीस है। वह इस प्रकार:-ढाई द्वीपमें पाँच
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