________________
पढ़े संग्रहीता इति अस्तित्वेन अस्तिधर्मा नास्तित्वेन नास्तिधर्मा युगपदुभयस्वभावत्वेन वक्तुमशक्यत्वात् अवक्तव्यः स्यात्पदे च अस्त्वादीनामेव नित्यानित्याद्यनेकान्तसंग्राहकम् ॥
अर्थ - हवे सातमो भांगो कहे छे, इहां अस्तिभावपणो वक्तव्य छे तेमज नास्तिभावपण वक्तव्य छे, अने अवक्तव्य पण छे. ए सर्व धर्म एक समयमां एक वस्तुमध्यें तथा एक गुणमध्ये तथा एक पर्यायमध्ये समकालें परिणमे छे जणावया माटे अस्तिनास्ति अवक्तव्यः ए सातमो भांगो. इहां अस्ति ते नास्ति न श्राय अने नास्ति ते अस्ति न धाय तथा वक्तव्य ते अवक्तव्य न थाय अने अवक्तव्य ते वक्तव्य न थाय ते जणाववाने अर्थे स्यात्पद ग्रह्यो छे. इहां अस्तिपणे जे भाव छे ते अस्तिधर्म अने नास्तिपणे जे भाव छे ते नास्तिपणे ह्या छे, वेहु समकाले छे ते नाटे एक समय वक्तव्य के० कहेवामां अशक्य छे, असमर्थ छे, तेथी अवक्तव्य के० अगोचरपणे छे अने जे स्थात्पद छे ते अस्तिधर्म नास्तिधर्म अवक्तव्यधर्मनो नित्यपणो, अनित्यपणो प्रमुख अनेकांतनो संग्रह करे छे जे अस्तिधर्म हे ते नित्यपणे पण छे तथा अनित्यपणे पण छे एकपणे छे, अनेकपणे छे, भेदपणे छे, अभेदपणे छे, इत्यादिक ते अस्तिधर्ममां अनेकांतता छे तेने ग्रहे छे. केमके वस्तुनो एकगुण तेमां अस्तिपणो के नास्तिपणो छे, नित्यपणो छे, अनित्यपणो छे, भेदपणी छे, अभेदपणो छे, वक्तव्यष्णो छे, अवक्तव्यपणो छे, भव्यपणो छे, अभव्यपणो छे, ए अनेकांतपणो एहज स्याद्वाद छे तेनुं संकेतिक वाक्य ते स्यात्पद छे ए रीते जाणत्रो.