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________________ *-- ** * '' श्रीवर्द्धमानमानभ्य, स्वपरानुग्रहाय च । क्रियते तत्त्वबोधार्थ, पदार्थानुगमो-मया ॥१॥ अर्थ-श्रीके गुणनी शोभा अतिशय शोभायें विराजमान एहवा श्रीवर्द्धमान अरिहंत शासनना नायक ते प्रतें अस्य-16 तपणे नमीने नमस्कार करीने पोतानो मान मूकी त्रण योग समावी गुणीने अनुयायी चेतनानु करवु तेने नमवू कहिये जतेपण स्वके रोशाने अने पर सिप अपना श्रोतादिकने अनुग्रहके० उपकारने सारु तत्त्वके० यथार्थ वस्तुधर्म तेने 15 बोधके. जाणवाने अर्थे पदार्थके० धर्मास्तिकायादिक छ मूलद्रव्य तेनो अनुगमके० साचो प्ररुपवो ते क्रियते के करिये छैय. जगत्मा मतांतरीओ द्रव्यने अनेकपणे कहे छे तिहां नैयायिक सोल पदार्थ कहे छे. वैशेषिक सात पदार्थ कहे छे. वेदांतिक, सांख्य एक पदार्थ कहे छे. मीमांसक पांच पदार्थ कह छे. पण ते सर्व मिथ्या छे. तेणे पदार्थनुं स्वरूप जाण्यु नथी अने श्रीअरिहंत सर्वज्ञ प्रत्यक्षज्ञानी ते एक जीव अने पांच अजीव ए रीते छ पदार्थ कहे छे. इहां कोई पुछे जे नवतत्त्व रूप नव पदार्थ कह्या छे ते केम? तेने उत्तर जे एक जीव, बीजो अजीय, ए जे पदार्थ तो मूल छे अने शेष सात ||5|| तत्त्व तो जीव अजीवनो साधक बाधक शुद्ध अशुद्ध परिणतिनी अवस्था भिन्न ओलखाबवाने कस्या छे. श्लोक ॥ द्रव्याणां च गुणानां च, पर्यायाणां च लक्षणं । निक्षेपनयसंयुक्तं, तत्वभेदैरलकृतम् ॥ तत्र तत्त्वभेदपर्यायैाख्यातस्य-जीवादेर्वस्तुनो भावः स्वरूपतत्त्वम् - * **-*-*-
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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