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च्छिजो भिजो जाय खओ, जो इह मे हु शरीरं । अप्पा भावे निम्मलो, जे पावं भवतीरं ॥९॥
अर्थ-भव्य प्राणी एम चिंतवे जे ए शरीर छीजजाओ भेदीजजाओ क्षयथइजाओ विणशीजाओ ए माहारुं शरीर है पुद्गलीक छे परवस्तु छे ते एकदिवसें मूकबुं छे माटे रे प्राणी! तुं आपणी आत्माने निर्मल पणे ध्याव तो संसारथी तरीने कांठो पामीश.
एहिज अप्पा सो परमप्पा, कम्म विसेसोई जायोजप्पा।
इदो देवताहुलो परामप्पा, वह तुझे अप्पो अप्पा ॥ १०॥ अर्थ-अहो भव्य जीव! एहीज आपणो आत्मा छे ते शुद्ध ब्रह्म छे पण कर्मने वश पझ्यो जन्ममरण करे छे पण । ||ए शरीरमा जे जीव छे ते देव छे परमात्मा छे माटे तुमे आपणो आत्मा ध्यावो तरण तारण । आत्माज छे एम श्री हेमाचार्य वीतराग स्तोत्रमा कह्यो छे. यः परात्मा परं ज्योतिः, परमः परमेष्ठिनाम् । आदित्यवर्णोतमसः, परस्तादामनंति यं ॥१॥
__सर्वे ये नोदमूल्यंत, समूलाः क्लेशपादपाः इत्यादि ॥ अर्थ-परमात्मा छे परमज्योति छे पंचपरमेष्ठीथी पण अधिक पूज्य छै केम के पंचपरमेष्ठीतो मोक्षमार्गना देखाडनारा छे पण मोक्षमा जवावालो तो आपणो जीव छे अज्ञाननो मिटावनार छ सर्व कर्म क्लेशनो खपावनार के एवो