SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितसारसंग्रहः [ २. ४४ अत्रोद्देशकः एकादिनवान्तानां पञ्चदशानां शरेक्षणस्यापि । रसवह्नयोर्गिरिनगयोः कथय घनं द्रव्यलब्ध्योश्च ॥४८॥ हिमकरगगनेन्दूनां नयगिरिशशिनां खरेन्दुबाणानाम् । यद मुनिचन्द्रयतीनां वृन्दं चतुरुदधिगुणशशिनाम् ॥४९॥ राशिर्घनीकृतोऽयं शतद्वयं मिश्रितं त्रयोदशभिः। तद्विगुणोऽस्मास्त्रिगुणश्चतुर्गुणः पञ्चगुणितश्च ॥५०॥ शतमष्टषष्टियुक्तं दृष्टमभीष्टे घने विशिष्टतमैः । एकादिभिरष्टान्त्यैर्गुणितं वद तद्धनं शीघ्रम् ॥५१॥ बन्धाम्बरर्तुगगनेन्द्रियकेशवानां संख्या: क्रमेण विनिधाय घनं गृहीत्वा । आचक्ष्व लब्धमधुना करणानुयोगगम्भीरसारतरसागरपारदृश्वन् ॥५२॥ इति परिकर्मविधौ पञ्चमो घनः समाप्तः ॥ घनमूलम् षष्ठे घनमूलपरिकर्मणि करणसूत्रं यथाअन्त्यघनादपहृतघनमूलकृतित्रिहतिभाजिते भाज्ये । प्रावित्रहताप्तस्य कृतिः शोध्या शोध्ये घनेऽथ धनम् ॥५३॥ १. ४८ और ४९ वें श्लोकों के स्थान में, M में निम्न पाठ है एकादिनवान्तानां रुद्राणां हिमकरेन्दूनाम् । वद मुनिचन्द्रयतीनां वृन्दं चतुरुदधिगुणशशिनाम् ।। -------------- उदाहरणार्थ प्रश्न एक से लेकर ९ तक संख्याओं और १५, २५, ३६, ७७ और ९६ के घन क्या होंगे? ॥४८॥ १०१, १७२, ५१६, ७१७ और १३४४ के घन क्या होंगे ? ॥४९॥ संख्या २१३ का घन किया जाता है। इस संख्या की दुगुनी, तिगुनी, चौगुनी और पांचगुनी राशियों के भी घन करने पर प्राप्त होने वाली राशियाँ प्राप्त करो ॥५०॥ यह देखा जाता है कि १६८ में एक से लेकर आठ तक की समस्त संख्याओं का गुणन करने पर प्राप्त राशियाँ धन राशियों से सम्बन्धित हैं। उन धन राशियों को शीघ्र बतलाओ ॥५॥ हे करणानुयोग गणित की क्रियाओं के अभ्यासरूपी गहरे तथा उत्कृष्ट समुद्र के पारदृष्टा! दाहिनी ओर से बाई ओर ४, ०, ६, ०, ५ और ९ क्रमानुसार लिख कर प्राप्त संख्या का घनफल शीघ्र बतलाओ ॥५२॥ इस प्रकार, परिकम व्यवहार में, घन नामक परिच्छेद समाप्त हुआ। घनमूल परिकर्म-क्रियाओं में षष्ठम घनमूल क्रिया सम्बन्धी निम्नलिखित नियम है अन्तिम घन स्थान तक के अंकों द्वारा निरूपित संख्या में से सबसे अधिक सम्भव घन संख्या घटाओ। तब, (अग्रिम) भाज्य स्थान द्वारा निरूपित अंक को स्थिति में रखने के पश्चात् उसे उस धन के घनमूल के वर्ग की तिगुनी राशि द्वारा भाजित करो। तब (अग्रिम) शोध्य स्थान द्वारा निरूपित अंक को स्थिति में रखने के पश्चात् उसमें से उपर्युक्त भजनफल के वर्ग की त्रिगुणित राशि को उपर्युक्त ( सबसे अधिक सम्भव घन के) मूल द्वारा गुणित करने से प्राप्त राशि को घटाओ। और तब (अग्रिम) धन स्थान द्वारा निरूपित अंक को स्थिति में रखने के पश्चात् उसमें से ऊपर प्राप्त हुए भजनफक के घन को घटाओ॥५३॥
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy