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गणितसारसंग्रहः
[ १.६१
नव नन्दं च रन्धं च पदार्थं लब्धकेशवौ । निधिरत्नं ग्रहाणं च दुर्गानाम च संख्यया ॥ ६१ ॥ आकाशं गगनं शून्यमम्बरं खं नभो वियत् । अनन्तमन्तरिक्षं च विष्णुपादं दिवि स्मरेत् ॥ ६२ ॥ अथ स्थाननामानि
एकं तु प्रथमस्थानं द्वितीयं दशसंज्ञिकम् । तृतीयं शतमित्याहुः चतुर्थं तु सहस्रकम् ||६३ || पञ्चमं दशसाहस्रं षष्ठं स्याल्लक्षमेव च । सप्तमं दशलक्षं तु अष्टमं कोटिरुच्यते || ६४ || नवमं दशकोट्यस्तु दशमं शतकोटयः । अर्बुदं रुद्रसंयुक्तं न्यर्बुदं द्वादशं भवेत् || ६५॥ खवं त्रयोदशस्थानं महाखवं चतुर्दशम् । पद्मं पञ्चदशं चैव महापद्मं तु षोडशम् ||६६ || क्षोणी सप्तदशं चैव महाक्षोणी दशाष्टकम् । शङ्खं नवदशं स्थानं महाशङ्खं तु विंशकम् || ६७ || क्षित्यैकविंशतिस्थानं महाक्षित्या द्विविंशकम् । त्रिविंशकमथ क्षोभं महाक्षोभं चतुर्नयम् ॥६८॥ अथ गणकगुणनिरूपणम्
लघुकरणोहापोहानालस्यग्रहणधारणोपायैः । व्यक्तिकराङ्कविशिष्टैर्गणकोऽष्टाभिर्गुणैर्ज्ञेयः ॥६९॥ इति संज्ञा समासेन भाषिता मुनिपुङ्गवैः । विस्तरेणागमाद्वेद्यं वक्तव्यं यदितः परम् ॥७०॥ इति सारसंग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतौ संज्ञाधिकार समाप्तः ॥
ये हैं । वे यहाँ अनुवादित नहीं किये गये हैं ॥ ५३-६२॥
स्थान-नामावलि [ संकेतनात्मक स्थानों के नाम ]
प्रथम स्थान वह है जो एक ( इकाई ) कहलाता है, दूसरा स्थान दश ( दहाई ), तीसरा स्थान शत ( सैकडा ) और चौथा सहस्र (हजार ) कहलाता है ॥ ६३ ॥ पाँचवा दस सहस्र ( दस हजार ), छटवाँ लक्ष ( लाख ), सातवाँ दशलक्ष ( दस लाख ) और आठवाँ कोटि ( करोड़ ) कहलाता है ॥६४॥ नौवाँ दशकोटि (दस करोड़) और दसवाँ शतकोटि ( सौ करोड़ ) कहलाता है। ग्यारहवाँ स्थान ( अरब ) और बारहवाँ न्यर्बुद ( दस अरब ) कहलाता है ॥ ६५ ॥ तेरहवाँ स्थान खर्व (ख) चौदहवाँ महाखर्व ( दस खरब ) कहलाता है । इसी तरह, पंद्रहवाँ पद्म और सोलहव कहलाता है ॥६६॥ पुनः सत्रहवाँ क्षोणी, अठारहवाँ महाक्षोणी कहलाता है । उन्नीसवाँ स्थान बीसवाँ महाशङ्ख कहलाता है ॥६७॥ इक्कीसवाँ स्थान क्षित्या बाईसवाँ महाक्षित्या कहलाता है । तेईसवाँ क्षोभ और चौबीसवाँ महाक्षोभ कहलाता है ॥ ६८ ॥
और
गणकगुणनिरूपण
निम्नलिखित आठ गुणों से गणितज्ञ की पहिचान होती है
(१) लघुकरण -- हल करने में शीघ्र गति, (२) ऊह — अग्रविकल्प, कि इच्छित फल प्राप्त हो सकेगा, (३) अपोह - अग्रविकल्प, कि इच्छित फल प्राप्त नहीं होगा, (४) अनालस्य - प्रमाद न होना, (५) ग्रहण - समझने की शक्ति, (६) धारण - स्मरण रखने की शक्ति, (७) उपाय - साधन करने की नई रीतियाँ खोजना, एवं (८) व्यक्तिकराङ्क - उन संख्याओं तक पहुँचने का सामर्थ्य रखना जो अज्ञात राशियों को ज्ञात बना सकें ॥ ६९ ॥ इस प्रकार, मुनि पुङ्गवों ने संक्षेप में परिभाषाओं का कथन किया है। जो कुछ इसके विषय में आगे विस्तार रूप से कहा जाना चाहिए उसे आगम' के अध्ययन से ज्ञात करना चाहिये । इस प्रकार, महावीराचार्य की कृति सारसंग्रह नामक गणित-शास्त्र में, संज्ञा अधिकार समाप्त हुआ ॥ ७० ॥
१ यहाँ आगम का आशय, सम्भवतः जिनागम प्रणीत अलौकिक गणित से हो जिसके विषय में ग्रंथकार द्वारा मात्र यहीं संकेत किया गया प्रतीत होता है ।