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गणितसारसंग्रह
ज्यामिति पर आधारित अद्वितीय साधन को प्रकाश में लाया, उसी प्रकार यहाँ भारत में षटखंडागम जैसे सिद्धान्त ग्रन्थों में न केवल दर्शन और धर्म को, वरन् द्रव्यों (जीव और पुद्गल) के प्रमाणों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, विकल्प, अल्प बहुत्व के साधनों से दृश्य रूप दिया। इसका वृहद विवेचन यहाँ देना सम्भव नहीं है। इसके हेतु तिलोय पण्णत्ती के गणित के सिवाय धवल ग्रन्थों में मुख्यतः पुस्तक ३ और ४, केशव वर्णी अथवा टोडरमल की गोम्मटसार की टीका तथा गोपालदास बरैया कृत जैनसिद्धान्तदर्पण दृष्टव्य हैं।
यहाँ यह बात बतलाना आवश्यक है कि पिथेमोरीय वर्ग ने जहाँ अपरिमेयको परिमेय बनाने के लिये ज्यामिति आकृतियों का आश्रय लिया है, वहाँ प्राकृत ग्रन्थों में परिमेय का बोध देने के पश्चात् उसे अपरिमेय रूप में भी प्रस्तुत किया है। यहीं सामान्यकरण का बीज छिपा है । इनके प्रदर्शन के लिये प्राकृत ग्रन्थों में जहाँ परमाणु द्वारा अवगाहित आकाश-प्रदेश (बिन्दु) को मूलभूत लिया है, वहाँ पिथेगोरस का बिन्दु भी उल्लेखनीय है,
"Points are the primary elements of space for Pythagorus, and à point is that which has position only. Unlike material things & point has neither parts nor magnitude. These defects are shared by 1 when the latter is regarded as the Monad or the generative element of number. If Pythagorus thought of space as being made up of points, then points generated his space. But whatever he imagined space to be, he identified a point with 1.**
(६)१ को संख्या राशि में समन्वित न करने वाले और सम्भवतः भारतीय पगड़ी को धारण करने वाले पिथेगोरस का बिन्दु हमें एलिया निवासी ज़ीनो के चार असद्भासों ( विरोधाभासों) की ओर भी आकृष्ट करता है। प्लेटो ने उल्लेख किया है कि वह समझ चुका था कि किसी वस्तु को समान और असमान, एक और अनेक, स्थिर और गतिवान् कैसे सिद्ध करना ।
जीनो के “सान्त की अनन्त विभाज्यता के खंडन" और अविभागी "समय" (now) अथवा "वर्तमान काल" जैसी अवधारणाओं ( concepts) में हम जिनागम प्रणीत “प्रदेश" और "समय" सम्बन्धी मान्यताओं का स्पष्ट बिम्ब देखते हैं। इस सम्बन्ध में ऐसा प्रतीत होता है मानो स्याद्वाद पर आधारित अनेकान्तात्मक वस्तु स्वरूप विषयक ज्ञान का जीनो ने आधार लेकर सम्भवतः इन असद्भासों आदि का संकलन केवल अपने आराध्य पारमेनिडीज़ (Parmenides, fl. bth century B.C.) के सिद्धान्तों की रक्षा के लिए विवादोत्सुक विद्वानों को विडम्बना में डालने के हेतु किया हो। इसकी पुष्टि निम्नलिखित अवतरण से होती प्रतीत होती है :
“'Yes, Socrates', said Zeno; 'but though you are as keen as a Sparton hound, you do not quite catch the motive of the piece, which was only intended to protect Parmenides against ridicule..."[]
* The Magic of Numbers, p. 161. + Science Awakening, Plate 13, p. 112. +T. Heath : Greek History of Mathematics, vol. (i). p. 273. [] The Dialogues of Plato by B. Jowett, vol. II, p 634. (1953) Oxford,