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प्रस्तावना
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प्रयुक्त करने, तथा गणित में गति लाने में कहां तक प्रेरक रहा होगा, इस पर हमें अभी विचार करना शेष है। उपर्युक्त गणित के प्रयोग हम प्राकृत ग्रंथों में देखते हैं, परन्तु विशेषरूप से दो तथ्य हमें आश्चर्य में डाल देते हैं:
(१) तिलोय-पण्णत्ती के चतुर्थ अधिकार में गाथा १८० और १८१ में दिये गये सूत्र जीवा और धनुष का प्रमाण निकालने के लिए उद्धत हुए हैं। गणना/१० के आधार पर इन सूत्रों की संरचना का प्रमाण मिलता है । जीवा के विषय में बिलकुल ऐसा ही सूत्र,
जीवा = (व्यास)२- (व्यास - बाण )२] के रूप में, बेबिलन के अभिलेखों के आधार पर २६०० ई० पूर्व (१) उपस्थित होना आश्चर्य जनक है। जहाँ का मान ३ होना स्वीकृत हो चुका था वहाँ पिथेगोरस के साध्य के आधार पर इस सूत्र का होना उपयुक्त प्रतीत होता है। धनुष के सम्बन्ध में दिया गया सूत्र, T का मान /१० लेने के आधार पर है जो बेबिलन में अप्राप्य है I
(२) वीरसेन ने क्षेत्र प्रयोग विधिके आधार पर जो बीजीय समीकरणों का रैखिकीय निरूपण दिया है, वह भी क्या बेबिलन अथवा यूनान से लिया गया है, अथवा पारपरिमित गणात्मक संख्याओं के निरूपण के लिये प्रचलित अनेक विधियों में से एक यह विधि भी जैनाचार्यों की मौलिक रूप से आविष्कृत विधि है, यह भी विचारणीय है ।*
(३) षाष्ठिका पद्धति का उद्गम स्थल बेबिलन माना जाता है। ६० को आधार लेने के कई कारण प्रस्तुत किए गये हैं। यह पद्धति ज्योतिष में विशेष रूप से स्थान पाये हुए है। तिलोय पण्णत्ती में सूर्य का एक पूर्ण परिभ्रमण ६० मुहूर्तों में माना है। ६०, माने हुए १०९८०० गगन खंडों का एक गुणनखंड भी है । यह गणना भी बेबिलन और चीन से सहसम्बन्ध खोजने में सम्भवतः सहायक सिद्ध हो सकती है।
अब हम यूनान में प्रवेश करते हैं। यहाँ, निस्संदेह, ज्योतिष गणना में राशि सिद्धान्त, १२ घंटे का दिन, छाया माप निरूपण ( सूर्य घड़ी के रूप में Gnomon और Polos), चन्द्र और ग्रहों की गतियों का अवलोकन, बेबिलनीय प्रभावों से अछूता नहीं है। परन्तु यह सब प्रभाव क्या पिथेगोरस कालीन है, अथवा पिथेगोरस पर ज्योतिष का भी प्रभाव किसी दूसरे देश का था, इस पर विचार करना है। इस में सन्देह नहीं कि उक्त प्रभाव पिथेगोरस के बाद दृष्टिगत अवश्य होता है। परन्तु हमें पिथेगोरस के काल का अध्ययन बड़ी सावधानी से करने की आवश्यकता है। इसके विषय में हम सर्वप्रथम कुछ किंवदंतियाँ और तथ्य पाठकों के सम्मुख रखना चाहेंगे। (१) यूनान के "सात ज्ञानियों में से थेलीज़ प्रथम था, जिनके विषय में कहा जाता था,
“Sayings such as the celebrated Delphic “Know thyself, were ascribed to them"t
(२) सूर्य ग्रहण के विषय में जो फलित थेलीज़ ने घोषित किया था, उसके विषयमें वाएर्डेन का का यह कथन है
"Herodotus reports ( see p. 84 ) that, during the battle on the Halys, day was suddenly turned into night and that Thales had pre
I J. L. Coolidge : A History of Geometrical Methods, pp. 6, 7 ( 1940 ). * षट् खंडागम पु., ३, पृ. ४२-४३ । † Science Awakening, p. 85.