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गणितसारसंग्रह
अनुसार, मिस्र के यंत्री, पिथेगोरस के साध्य का उपयोग रज्जु के द्वारा करते थे, और वे रज्जु बांधने या खींचने वाले कहलाते थे। वाएडेन का मत है कि केन्टर का यह कथन कि ये लोग ३:४:५ वाले रज का उपयोग करते थे, और उन्हें पिथेगोरस का साध्य ज्ञात था, सही नहीं है। इतना अवश्य है कि पिरेमिड आदि के निर्माण में मिस्री बहुत शुद्ध रूप से समकोण बनाते थे । *
. (५) मिस्र में द्विगुणित करने का परिकलन (duplatio) और अर्द्धच्छेद प्रक्रिया (mediatio) प्राचीन काल से प्रचलित थी। यही यूनान में नीओपिथेगोरियन वर्ग ने उपयोग में उतारा, और यही हम षटखंडागम! जैसे ग्रंथों में बिखरे हुए पाते हैं । भिन्नों के परिगणन मिस्र के इन पेपायरसों में तथा धवला टीका में विस्तृत रूप में देखने मिलता है। इनके सिवाय 'ह' (aha) परिकलन राशि कलन की परम्परा को सूचित करने हैं। कूट (false) स्थिति के मिस्री प्रयोग महावीराचार्य के गणितसार संग्रह में देखने में आये हैं।
(६) वर्ग आधार वाले स्तूप (और सम्भवतः उसके समच्छिन्नकों) के घनफल निकालने में मिस्र में शुद्ध और प्रसिद्ध सूत्रों का उल्लेख मिलता है।
यहां भारत में वीरसेन द्वारा युक्ति बल से सिद्ध किया गया वर्ग आधार वाले लोकाकाश का चित्रण, उसके तथा वातवलय की परतों के घनफल का कलन, आदि हमें मिस्र के स्तूपों के वास्तविक भेद को जानने के लिए प्रेरित करते हैं। कुफू द्वारा निर्मित कराया गया महास्तूप मेधावी वैज्ञानिकों के अधीक्षण में धर्म, गणित, ज्योतिष तथा अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के संयुक्त संस्कार के फल स्वरूप निर्मित किया गया होगा। हिरॉडोटस के अनुसार मिस्र वासी स्तूप आकार को जीवन का प्रकार रूप (emblem ) मानते थे । स्तूप का विस्तृत आधार हमारी वर्तमान दशा के अस्तित्व का प्रारम्भ एवं उसका बिन्दु में अवसान, ( सांसारिक) अस्तित्व का अन्त माना जाता था। हो सकता है कि इसी कारण उन्होंने अपनी समाधियों में इस आकृति का उपयोग किया हो ।+ ईसा से प्रायः ४८४ वर्ष पूर्व हुए हिरॉडोटस की उक्त अभ्युक्ति की पुष्टि मेम्फिस के प्रायः उत्तर में स्थित पिरेमिड युग से पूर्व के मंदिर की परम्परा द्वारा होती है। इस मंदिर में सबसे पवित्र 'पिरेमिड के आकार का एक पत्थर था। यह विश्वास किया जाता था कि यह पत्थर सूर्य (अज्ञान अंधकार विनाशक) भगवान् को फीनिक्स (Gr. Phoinix ) पक्षी के रूप में प्रकट होने में आधार रूप था । प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार यह पक्षी ५०० या ६०० वर्ष जीवित रहने के पश्चात् अपनी चिता बनाकर स्वयं के पंखों से सुलगाता है, और अपनी ही भस्म में से निकल कर उड़ जाता है। इस प्रकार वह अमरता का प्रतीक, अथवा सर्वोत्कृष्ट, सम्पूर्ण रूप (paragon) भी माना जाता है। यह विवरण हमें कर्म सिद्धान्त की मान्यता का प्रारूप प्रतीत होता है, जहां कर्म ईधन को तपकी ज्वालाओं में विदग्ध कर मुक्ति या कैवल्य प्राप्त किया जाता है।
हिरॉडोटस ने स्तूप के विस्तृत आधार को हमारी वर्तमानदशा के अस्तित्व का प्रारम्भ बतलाया है। चार महान भुजाएँ संसारी जीवन का प्ररूपण करती हैं जो सम्भवतः पिथेगोरस का Tetractys है और जैन मान्यता का चतुर्गति चक्र (चदुचंकमण) है। इस दशा का बिन्दु रूप में प्रकट होना (और सांसारिक)
* B. L. van der Waerden, Science Awakening, Holland, p. 6, Eng. trans. (1945). + Ibid, p. 18, 1 षटूखंडागम, पु० ४, गणित प्रस्तावना । x B. L. Waerden, Science Awakening, pp. 34,35. + The Encyclopedia Americana, p. 40, vol. 23, ( 1944), * I. E. S. Edwards, The Pyramids of Egypt, ( Pelican ), p. 21, ( 1947).