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________________ ३० गणितसारसंग्रह (१३) २३८०३ पल (१४) १६३ युगल (१५ और १६) १११६६ योजन; २७५८ वाह (१७) ११२ द्रोण मुद्ग; ५०४ कुडब घी; ३३६ दोण तण्डुल; ४४८ युगल वस्त्र; ३३६ गाएँ; १६८ सुवर्ण (१८) १६०; ११२३३ धरण (१९) १२० खंड (२०) ५२५ खंड (२१) २४ तीर्थकर (२२) २१६ शिला (२४ और २५) ५ वर्ष और ११७ दिन (२६) २१३३ दिन (२७) १० वर्ष और २४ दिन (२८ से ३०) ३५११५ दिन (३१) ७६५ दिन (३३) १० पुराण; १८ पुराण; २८ पुराण (३४) २९६१२० सुवर्ण (३५) ३६ गोधूम (३६) ४००० पण (३७) २५० कर्ष (३८) ९६० अनार (३९) ५६०००० सुवर्ण (४०) ७५० सुवर्ण (४१) ५४ (४२) २५२ सुवर्ण (४३) ९४५ वाह । अध्याय-६ (३) ७; ५ : ४, ५ (५) ९; १८ और २५६ पुराण (६) १७३२ कर्षापण (७) ५१ पुराण और १४ पण (८) २०० (९) ३३६ कर्षापण (११) १३३३ पुराण (१२) १४ (१३) ५०, ६०, ७० (१५) १० मास (१६) ६ मास (१७) १० मास (१९ और २०) ३५७ पल (२२) ३०; १८ (२४) ३० (२६) ५ मास (२७) ५ मास; ७५ (२८) ४६ मास; ३१३ (३०) ३१३ (३१) ६०, ६ मास (३२) २४ मास; ३६ (३४) १०; २३ मास (३६) ४८; १० मास; २४ (३८) १०, ६, ३, १५ (४०) ४०, ३०, २०, ५० (४१) ५, १०, १५, २०, ३०; (४३)५मास; ४ मास; ३ मास; ६मास; (४५) ८ (४६) ६; १६ (४८) २०; २८; ३६ (४९ और ५०) २५ (५२) १८ (५३) ३० (५५) ९०० (५६) ८०० (५८) २८ मास (५९) १८ मास (६१) २४००, ८००; १२००; ९६; (६२) १०००; ४२०, ४८०; ९० (६४) ६० (६५) ५० (६७) २४००; २७२०, ३४०० (६८) १०५०; १४००; १८०० (६९) ५१००, ४५९०, ४०५० (७०) १३००, ११९८; ११५०; (७२ और ७३३) २०७०-४, ८१०३, मास (७३५ से ७६) ४४०, ११, ५ मास (७८३) २३ मास; हैं (८०३) ४८; ३२, २४, १६ (८१३) ३; ९; २७, ८१; २४३ (८२३ से ८५३) १२०; ८०, ४०; १६०; ६०; २०; (८६३) ४८; ७२; ९६; १२०; १४४ (९०३ से ९१६) ७० अनार; ३५ आम; कपित्थ (९२३ से ९४३) दुग्ध प्रथम घट १३ द्वितीय घट १३ तृतीय घट ६ (९५३ और ९६३) १५ मनुष्य; ५० मनुष्य (९८३) ४, ९, १८, ३६ (९९३) ८; १३, २१, ३६ (१००३) २, ४, ७, १३, २५६ (१०१३) १६, ३९, ९६; २३४ (१०३३) २२०; ३७ (१०४३) २०७३ (१०५३) ६; ४; ३ ( अंतिम दो मन से चुनी हुई राशियाँ हैं । ) (१०६३) ८ (१०८३) ८०३१६००; १८६०; २२३१ (११०३) १४८; ३५३२८; १८४ (११२३ और ११३३) १३ कुसुम (११४३) ११०४ कुसुम (११७३) ५ (११८३) १७ (११९३) २६ (१२०३) ९ (१२१३) ५५ (१२२१) ६१ (१२३३) ५९ (१२४३) ३९ (१२५३) १६ (१२६३) १५ (१९७३) ५३७ (१२८३) १३८ (१२९३) १९४ (१३१३) ११ (१३२३ और १३३३) २५ (१३५३) ३ (१३७३) १०, ५७ (१३८१) धनात्मक संयवित संख्याओं की दशा में-२१, १६, १३, ११, २१, १९; ३७,७; ३७; ६,१६, १३५, १२, १, २५ । ऋणात्मक संयवित संख्याओं की दशा में दधि MN VA
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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