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________________ गणितसारसंग्रहः २७८ ] कश्चिद्राजकुमारः प्रासादाभ्यन्तरस्थः सन् । पूर्वाह्ने जिज्ञासुर्दिनगतकालं नरच्छायाम् ॥ ३५ ॥ द्वात्रिंशद्धस्तो जाले प्राग्भित्तिमध्य आयाता । रविभा पश्चाद्भित्तौ व्येकत्रिंशत्क रोर्ध्व देशस्था ॥ ३६ ॥ तद्भित्तिद्वयमध्यं चतुरुत्तरविंशतिः करास्तस्मिन् । काले दिनगतकालं नृच्छायां गणक विगणय्य । कथयच्छायागणिते यद्यस्ति परिश्रमस्तव चेत् ॥ ३७३ ॥ समचतुरश्रायां दशहस्तघनायां नरच्छाया | पुरुषोत्सेधद्विगुणा पूर्वा प्राक्तटच्छाया ॥ ३८३ ॥ तस्मिन् काले पश्चात्ताश्रिता का भवेद्गणक | आरूढच्छायाया आनयनं वेत्सि चेत्कथय ॥ ३९३ ॥ शङ्कोर्दीपच्छायानयनसूत्रम् - शङ्कनितदीपोन्नतिराप्ता शङ्कप्रमाणेन । तल्लब्धहृतं शङ्कोः प्रदीपशङ्कन्तरं छाया ।। ४०३ ।। [ ९.३५ ठहरा हुआ कोई राजकुमार पूर्वाह्न दिन में बीते हुए समय को ज्ञात करने का, तथा ( मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) मानवी छाया के माप को ज्ञात करने का इच्छुक था । तब सूर्य की रश्मि पूर्व की ओर की दीवाल के मध्य में ३२ हस्त ऊँचाई पर स्थित खिड़की में से आकर, पश्चिम ओर की दीवाल पर २९ हस्त की ऊँचाई तक पड़ी। उन दो दीवालों का अंतर २४ हस्त है । हे छाया प्रश्नों से भिज्ञ गणितज्ञ, यदि तुमने छाया-प्रश्नों ( से परिचित होने ) में परिश्रम किया हो, तो ( उस दिन ) बीते हुए दिन के समय का माप और उस समय ( मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) मानवी छाया का माप बतलाओ ।। ३५-३७२ ॥ पूर्वाह्न समय मानवी छाया मानवी ऊँचाई से दुगुनी है । प्रत्येक विमिति में ( dimension) १० हस्त वाले वर्गाकार छेद के ऊर्ध्वाधर खात के संबंध में पूर्वी दीवाल से उत्पन्न, पश्चिमी दीवाल पर पड़ने वाली को ऊँचाई क्या होगी ? हे गणितज्ञ, यदि जानते हो, तो बतलाओ की लंबरूप दीवाल पर आरूढ़ छाया छाया का माप कितना होगा ? ॥ ३८२-३९३ ॥ किसी दीवाल के प्रकाश के कारण उत्पन्न होनेवाली शंकु की छाया को निकालने के लिये नियम: शंकु की ऊँचाई द्वारा हासित दीपक की ऊँचाई को शंकु की ऊँचाई द्वारा भाजित करना चाहिये । यदि इस प्रकार प्राप्त भजनफल के द्वारा दीपक और शंकु के बीच को क्षैतिज दूरी की भाजित किया जाय तो शंकु की छाया का माप उत्पन्न होता है ॥ ४०२ ॥ ( ३५-३७२ ) यह प्रश्न श्लोकों ८३ और २३ में दिये गये नियमों के विषय में है । ( ३८३ - ३९३ ) यह प्रश्न श्लोक २१ में दिये गये नियमानुसार हल किया जाता है । (४०३) बीजीय रूप से कथित नियम यह है:-छ-स ब - अ " अ जहाँ 'छ' शंकु की छाया का
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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